bhakti pad padya bhav
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मतवारो बादल आये रे
हरी को संदेसो कछु न लाये रे
दादुर मोर पपीहा बोले
कोएल सबद सुनावे रे
काली अंधियारी बिजली चमके
बिरहिनी अती दर्पाये रे
मन रे परसी हरी के चरण
लिसतें तो मन रे परसी हरी के चरण
मीरा बाई जी कहतीं हैं कि बादल गरज गरज कर आ रहे हैं। परन्तु वे हरी का कोई संदेशा नहीं लाये हैं। वर्षा ऋतु में मोर अपने पंख फैलाकर नाच रहा है और कोयल मधुर गीत गा रही है। काले बादलों के कारण अँधेरा छा गया है और बिजली की आवाज़ से दिल रो रहा है। ये सब विरह की आग को बढ़ा रहा है। मेरा मन हरी के दर्शन के लिए तरस रहा है।
हरी को संदेसो कछु न लाये रे
दादुर मोर पपीहा बोले
कोएल सबद सुनावे रे
काली अंधियारी बिजली चमके
बिरहिनी अती दर्पाये रे
मन रे परसी हरी के चरण
लिसतें तो मन रे परसी हरी के चरण
मीरा बाई जी कहतीं हैं कि बादल गरज गरज कर आ रहे हैं। परन्तु वे हरी का कोई संदेशा नहीं लाये हैं। वर्षा ऋतु में मोर अपने पंख फैलाकर नाच रहा है और कोयल मधुर गीत गा रही है। काले बादलों के कारण अँधेरा छा गया है और बिजली की आवाज़ से दिल रो रहा है। ये सब विरह की आग को बढ़ा रहा है। मेरा मन हरी के दर्शन के लिए तरस रहा है।
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