Bharat mein Pratham aam chunav ke bad kaun kaun se pakshi dal the
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इस चुनाव में वोटिंग 25 अक्टूबर को ही शुरू हुई थी. नया-नया आजाद हुआ भारत सभी वयस्क लोगों को वोट का अधिकार देकर इस लिहाज से अमेरिका और यूरोप से भी आगे निकल गया था
1950 का साल. एक तरफ आजाद भारत गणतंत्र बन चुका था. दूसरी ओर, एशियाई देशों में उथल-पुथल थी. चीन साम्यवाद की जकड़ में आ गया था. जॉर्डन और ईरान के प्रधानमंत्रियों का क़त्ल हो चुका था. उधर कश्मीर को लेकर भारत में भी उबाल था. जवाहरलाल नेहरू यूं तो कहने को प्रधानमंत्री नियुक्त हो गए थे, पर अभी तक देश ने उन्हें चुना नहीं था. रूस नेहरू पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा था तो उधर अमेरिका भी इसी कोशिश में था. कुल मिलाकर अस्थिरता का माहौल था.
इसी असमंजस की स्थिति में सबके सामने पहला यक्ष प्रश्न था कि गणतंत्र तो बन गया है, लेकिन देश लोकतंत्र कब बनेगा? सभी की उम्मीदें देश के मुखिया पर ही टिकी थीं. नेहरू को भी देश को लोकतंत्र बनाने की जल्दी थी. नतीजतन भारत चुनावी महाकुंभ की तैयारी करने लगा.
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