भरते की बूंदों में जीवन है
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समुद्र में ज्वार-भाटा के बाद हजारों मछलियां तट पर आ गिरी थीं। एक छोटी लड़की वहाँ बैठ कर एक-एक मछली उठा कर समुद्र में फेंक रही थी, ताकि उनके प्राण बचा सके। एक व्यक्ति उसके पास से निकलते हुए बोला, बच्चे! तट पर तो हजारों मछलियां पड़ी हैं। तुम्हारे ऐसा करने से कुछ ज्यादा अंतर नहीं पड़ने वाला है। लड़की उस व्यक्ति की ओर बिना देखे एक और मछली को पानी में उछालती हुई बोली, लेकिन इस एक को तो फर्क पड़ेगा। बाइबल में लिखा है, जब तक हम छोटी बातों में ईमानदार नहीं होंगे, बड़ी बातों में कैसे हो पाएंगे। यदि हम छोटी बातों में बेईमानी करेंगे तो बड़ी जिम्मेदारियों में कैसे ईमानदार होंगे। हम में बहुत से यह सोचते हैं कि केवल बड़ी बातों से ही बड़ा अंतर पड़ता है। लेकिन यदि अपने दिन प्रतिदिन के जीवन के घटनाक्रम को देखें तो पाएंगे कि हमें जो भी बड़ी उपलब्धियां मिलती हैं, वह छोटी-छोटी उपलब्धियों को मिला कर ही सम्भव होती हैं। बूंद-बूंद से सागर भरता है। समय एक अमूल्य स्त्रोत है। मिनट जोड़ कर घंटे बनते हैं। इसकी अनदेखी करना अपने आप को खतरे में डालना है, क्योंकि गुजरा हुआ समय कभी फिर हाथ नहीं आ सकता। क्या हम मिनट गँवा कर किसी घंटे को महत्वपूर्ण या सार्थक बना सकते हैं। हमारा जीवन छोटी-छोटी चीजों या बातों से ही बनता-बिगड़ता है, जिनका महत्व या परिणाम बड़ा होता है। अपने आप के साथ या दूसरों के साथ हमारा सम्बन्ध और उन सम्बन्धों से जुड़ी अनेक छोटी-छोटी बातें ही हमारे जीवन की दिशा तय करती हैं। बाइबल में इसी बात को इस तरह से कहा गया है, 'कोई अच्छा काम करने के पहले कभी अपने आप को कमजोर या म्लान अनुभव न करो, क्योंकि तुम एक महान कार्य की नींव रखने जा रहे हो और हमेशा छोटी चीजों से ही बड़ी चीजें बनती हैं।' स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में ही हो सकता है। मान लो हम अपनी पढ़ाई में अच्छे अंक प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखते, तो वे अच्छे अंक भी बेकार साबित होंगे। शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए व्यायाम, बौद्धिक सतर्कता और सकारात्मक सोच भी रखनी होगी। और हमारा शरीर वैसा ही होगा जैसी हम इसकी देखरेख करेंगे। यदि हम इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान नहीं रखते, तो हम बड़ी उपलब्धियाँ भी हासिल नहीं कर पाएँगे, क्योंकि उसके लिए हमारा शरीर ही साथ नहीं देगा। अच्छा स्वास्थ्य न होने पर हमारा समाज के प्रति योगदान भी सीमित हो जाएगा और हमारी सफलता भी। जीवन का दैनिक कार्यक्रम ऊपर से देखने में बेहद सामान्य या छोटी सी बात लगता है, परन्तु इनका ठीक से पालन करने-नहीं करने से ही हमारी उपलब्धियाँ निर्धारित होती हैं। एक प्रसिद्ध प्रबंध सलाहकार पीटर डूब्रर का कहना है कि मनुष्य का सब से जल्दी नष्ट होने वाला स्त्रोत समय है और यदि यही व्यवस्थित न किया जाए तो कुछ भी ठीक से नहीं किया जा सकता। हर एक मिनट छोटा है फिर भी हमारे विकास, उत्पत्ति पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह हर एक मिनट ही सफलता की कुंजी है। चींटियां शीत ऋतु में जमीन के नीचे अपना घर बना कर उसमें थोड़ी-थोड़ी सामग्री जमा करती रहती हैं। पक्षी भी एक-एक तिनका जोड़ कर अपना घोंसला बनाते हैं। छोटी शुरुआत और प्रयत्न मिला कर समाज के स्तर पर बड़ी उपलब्धियां पाई जा सकती हैं और इस तरह कई समस्याओं के समाधान ढूंढ लिए जा सकते हैं। ऐसा करने से सरकार या उसके किसी विभाग पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। हम सब में ईश्वरीय लक्षणों के बीज होते हैं। हम सब मानवता के प्रति अपना योगदान देना चाहते हैं। बस छोटे-छोटे योगदानों से बड़ी उपलब्धियां पाई जा सकती हैं।