Bhartiya sanskruti ki samiksha
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संसार के सभी विद्वानों ने 'संस्कृति' शब्द की विभिन्न परि संस्कृति मानव समुदाय के जीवन-यापन की वह परंपरागत किंतु निरंतर विकासोन्मुखी शैली है जिसका प्रशिक्षण पाकर मनुष्य संस्कारित, सुघड़, प्रौढ़ और विकसित बनता है।
'संस्कृति' शब्द संस्कृत भाषा की धातु 'कृ' (करना) से बना है। इस धातु से 3 शब्द बनते हैं- 'प्रकृति' (मूल स्थिति), 'संस्कृति' (परिष्कृत स्थिति) और 'विकृति' (अवनति स्थिति)। 'संस्कृति' का शब्दार्थ है- उत्तम या सुधरी हुई स्थिति यानी कि किसी वस्तु को यहां तक संस्कारित और परिष्कृत करना कि इसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त कर सके।
संस्कृति के दो पक्ष होते हैं-
(1) आधिभौतिक संस्कृति और (2) भौतिक संस्कृति।
सामान्य अर्थ में आधिभौतिक संस्कृति को संस्कृति और भौतिक संस्कृति को सभ्यता के नाम से अभिहित किया जाता है। संस्कृति के ये दोनों पक्ष एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। संस्कृति आभ्यंतर है, इसमें परंपरागत चिंतन, कलात्मक अनुभूति, विस्तृत ज्ञान एवं धार्मिक आस्था का समावेश होता है।
संस्कृति और धर्म में बहुत अंतर है। धर्म व्यक्तिगत होता है। धर्म आत्मा-परमात्मा के संबंध की वस्तु है। संस्कृति समाज की वस्तु होने के कारण आपस में व्यवहार की वस्तु है। संस्कृति धर्म से प्रेरणा लेती है और उसे प्रभावित करती है। धर्म को यदि 'सरोवर' तथा संस्कृति को 'कमल' की उपमा दें तो यह गलत न होगा। संस्कृति ही किसी राष्ट्र या समाज की अमूल्य संपत्ति होती है। युग-युगांतर के अनवरत अध्यवसाय, प्रयोग, अनुभवों का खजाना है संस्कृति।l
भारतीय संस्कृति की विशेषताएं :
भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का समन्वय, 2. अनेकता में एकता, 3. ग्रहणशीलता, 4. प्राचीनता, 5. निरंतरता, 6. लचीलापन एवं सहिष्णुता, 7. वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना, 8. लोकहित और विश्व-कल्याण और 9. पर्यावरण संरक्षण।
भारतीय संस्कृति का संरक्षण कैसे किया जाए? : भारत संभवत: विश्व का इकलौता देश होगा, जहां अपनी कला-संस्कृति को बचाने, संजोने और सहेजने को लेकर एक तरह का उपेक्षा का भाव दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति को और भी उन्नत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हमारे जो दोष संस्कृति में घर करते गए, हम उन्हें दूर करने का प्रयास करें तभी सच्चे रूप में उन्नति संभव हो सकती है।
हमारी संस्कृति के संरक्षण के लिए निम्न बातें हमें अपने आचरण में लानी होंगी-
1. अपनी धार्मिक परंपराओं के बारे में जानें, 2. अपनी पुश्तैनी भाषा को बचाना होगा, 3. परंपरागत व्यंजनों की विधि अगली पीढ़ी को सौंपना होगी, 4. संस्कृति की कला और तकनीकी को दूसरों से शेयर करना होगा, 5. समुदाय एवं समाज के अन्य सदस्यों के साथ समय बिताना, 6. सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व के उत्सवों का प्रबंधन और सहभागिता करना, 7. संस्कृति पर गौरव करना और उसे अपने आचरण में उतारना।
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