भव सागर किस प्रकार से लेखक पार करना चाहते हैं
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कुंवर पिपलिया गांव में चल रही भागवत कथा के पांचवें दिन सोमवार को आचार्य डा. रामाधार उपाध्याय ने कहा कि यह संसार भवसागर है। जिसका सामने का किनारा तो दिखाई दे रहा है, लेकिन दूसरा किनारा अदृश्य है। भवसागर पार करने के लिए दूसरा किनारा खोजकर उसे पार किया जा सकता है, लेकिन सवाल यह है कि दूसरा किनारा इस जीवन में मिले कैसे। इसका निदान भागवत में विद्यमान है। राजा परीक्षित ने भागवत महापुराण की कथा से वह किनारा खोज लिया था और भवसागर पार कर लिया।
कुंवर पिपलिया गांव में चल रही भागवत कथा के पांचवें दिन सोमवार को आचार्य डा. रामाधार उपाध्याय ने कहा कि यह संसार भवसागर है। जिसका सामने का किनारा तो दिखाई दे रहा है, लेकिन दूसरा किनारा अदृश्य है। भवसागर पार करने के लिए दूसरा किनारा खोजकर उसे पार किया जा सकता है, लेकिन सवाल यह है कि दूसरा किनारा इस जीवन में मिले कैसे। इसका निदान भागवत में विद्यमान है। राजा परीक्षित ने भागवत महापुराण की कथा से वह किनारा खोज लिया था और भवसागर पार कर लिया।श्री उपाध्याय ने कहा कि जीवन की अनेक परंपरा का पालन, शास्त्र के अनुसार करना चाहिए। धर्म के अनुकूल आचरण करना चाहिए। परमात्मा का प्रकाश जगत को प्रकाशित कर रहा है। जब हम आरती करते हैं तो उन परमात्मा का कृपा रूपी प्रकाश हमें प्राप्त होता है। आरती उतारने से उनके समस्त अंगों का प्रकाशपुंज प्राप्त हो जाता है। जिसे हम हाथों से आरती ग्रहण करके परमात्मा की प्रकाश अनुभूति कृपा प्राप्त करते हैं। जीवन में जो भगवत भक्ति, धर्ममय आचरण से जीवन यापन करके परमात्म तत्व की प्राप्ति करना भागवत का तत्व दर्शन है। मानव के कर्तव्यों, परंपराओं का पालन करना चाहिए। डॉ. रामाधार उपाध्याय ने बताया कि जीवन में मर्यादा का पालन करना चाहिए। यदि मर्यादा नहीं तो मनुष्य जीवन व्यर्थ है। श्री उपाध्याय ने यह भी बताया कि गोकुल में कृष्ण के आने से चहुंओर आनंद व्याप्त हो रहा है। सुख के सागर में सभी लोग गोते लगा रहे हैं। कृष्ण की बाल लीलाओं का आनंद सभी ले रहे हैं। माता यशोदा से बलराम द्वारा कृष्ण द्वारा मिट्टी खाने की शिकायत की गई तो माता ने पूछा कि तुम अपना मुंह दिखाओ कि तुमने मिट्टी खाई है तो उन्होंने मुंह दिखाया तो उसमें समस्त भू मंडल, सभी लोक दिखाई दे गए।
कुंवर पिपलिया गांव में चल रही भागवत कथा के पांचवें दिन सोमवार को आचार्य डा. रामाधार उपाध्याय ने कहा कि यह संसार भवसागर है। जिसका सामने का किनारा तो दिखाई दे रहा है, लेकिन दूसरा किनारा अदृश्य है। भवसागर पार करने के लिए दूसरा किनारा खोजकर उसे पार किया जा सकता है, लेकिन सवाल यह है कि दूसरा किनारा इस जीवन में मिले कैसे। इसका निदान भागवत में विद्यमान है। राजा परीक्षित ने भागवत महापुराण की कथा से वह किनारा खोज लिया था और भवसागर पार कर लिया।श्री उपाध्याय ने कहा कि जीवन की अनेक परंपरा का पालन, शास्त्र के अनुसार करना चाहिए। धर्म के अनुकूल आचरण करना चाहिए। परमात्मा का प्रकाश जगत को प्रकाशित कर रहा है। जब हम आरती करते हैं तो उन परमात्मा का कृपा रूपी प्रकाश हमें प्राप्त होता है। आरती उतारने से उनके समस्त अंगों का प्रकाशपुंज प्राप्त हो जाता है। जिसे हम हाथों से आरती ग्रहण करके परमात्मा की प्रकाश अनुभूति कृपा प्राप्त करते हैं। जीवन में जो भगवत भक्ति, धर्ममय आचरण से जीवन यापन करके परमात्म तत्व की प्राप्ति करना भागवत का तत्व दर्शन है। मानव के कर्तव्यों, परंपराओं का पालन करना चाहिए। डॉ. रामाधार उपाध्याय ने बताया कि जीवन में मर्यादा का पालन करना चाहिए। यदि मर्यादा नहीं तो मनुष्य जीवन व्यर्थ है। श्री उपाध्याय ने यह भी बताया कि गोकुल में कृष्ण के आने से चहुंओर आनंद व्याप्त हो रहा है। सुख के सागर में सभी लोग गोते लगा रहे हैं। कृष्ण की बाल लीलाओं का आनंद सभी ले रहे हैं। माता यशोदा से बलराम द्वारा कृष्ण द्वारा मिट्टी खाने की शिकायत की गई तो माता ने पूछा कि तुम अपना मुंह दिखाओ कि तुमने मिट्टी खाई है तो उन्होंने मुंह दिखाया तो उसमें समस्त भू मंडल, सभी लोक दिखाई दे गए।डॉ उपाध्याय ने बताया कि भगवान तो भाव के भूखे हैं। हम उनकी परीक्षा करने का प्रयास नहीं करें वह जब छोटे ही थे तो पूतना उनको अपने स्तनों पर हलाहल विष लगाकर आई उसका प्रयोजन था कि उनके प्राण हर लूं। कथा सुनने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।