भवन्तः भवता परिसरण मृद्धिनायकस्य विपये कीदृशं प्रचार दृष्टवनः?
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वैज्ञानिक विकास के चरम की वर्तमान सदी भौतिकता की पराकाष्ठा पर है। ऐसा होने से वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप मानव का जीवन भौतिक रूप से सरल किंतु नैतिक तथा आध्यात्मिक रूप से निम्नतम अवस्था में जाने के कारण जटिल हो गया। मानव मानसिक एवं नैतिक समस्याओं के पाश में निबद्ध है; जिससे वैश्विक परिदृश्य में अनेक सामाजिक समस्याएँ आज चिंता का विषय हैं। आज मानव समाज पर आतंकवाद, युद्ध, अशान्ति, असुरक्षा, वैमनस्य, अपराध, चोरी, हिंसा, वर्ग-संघर्ष, विभेद, शोषण, अनाचार, बलात्कार एवं अत्याचार आदि जैसे संकट हैं। इनके मूल में मानव की असीम भौतिक इच्छाएँ तथा उसका चारित्रिक पतन है। आज पुनः उन मूल्यों के अनुगमन की आवश्यकता है; जिनके द्वारा भारतीय ज्ञान-परम्परा में विश्व-कल्याण का पथ प्रशस्त किया गया है।