Hindi, asked by Dh931292, 1 year ago

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव ।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् ।
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम् ॥​

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Answered by shishir303
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भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्

गुणमहतामपि लालनीय एव ।

व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् ।

पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम् ॥

संदर्भ — ये श्लोक दसवी कक्षा के संस्कृत विषय के “शिशुलालनम्” पाठ से लिया गया है। जो कि संस्कृत के कवि दिङ्नाग के ग्रंथ “कुंदमाल” के पंचम अंक से संकलित है। ये उस समय के प्रसंग का वर्णन है जब लव-कुश श्रीराम से मिलने उनके दरबार में जाते हैं। श्रीराम उनके मासूम रूप-सौंदर्य पर मुग्ध होकर उनसे उनका परिचय पूछते हैं।

भावार्थ — राम कहते हैं कि शिशुजन अर्थात बच्चे अपनी मासूम स्वभाव और आयु के कारण अत्याधिक गुणवान व्यक्ति द्वारा भी स्नेह और दुलार के योग्य होते हैं। अर्थात बालक सभी से दुलार पाने के अधिकारी होते हैं। जिस प्रकार चंद्रमा अपने बालसुलभ स्वभाव के कारण सदैव भगवान शंकर के मुकुट की शोभा बनता है।

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