Hindi, asked by mishthibajaj2701, 10 months ago

bhavbhakti में कौन सा अलंकार प्रयुक्त है

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Answered by hjha1475
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बनाने वाले चमत्कारपूर्ण मनोरंजन ढंग को अलंकार कहते हैं। अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, 'आभूषण'। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य की।

संस्कृत के अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य दण्डी के शब्दों में 'काव्य' शोभाकरान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते' - काव्य के शोभाकारक धर्म (गुण) अलंकार कहलाते हैं।

हिन्दी के कवि केशवदास एक अलंकारवादी हैं।

भेद

अलंकार को दो भागों में विभाजित किया गया है:-

शब्दालंकार- शब्द पर आश्रित अलंकार

अर्थालंकार- अर्थ पर आश्रित अलंकार

आधुनिक/पाश्चात्य अलंकार- आधुनिक काल में पाश्चात्य साहित्य से आये अलंकार

1.शब्दालंकार

शब्दालंकार

जहाँ शब्दों के प्रयोग से सौंदर्य में वृद्धि होती है और काव्य में चमत्कार आ जाता है, वहाँ शब्दालंकार माना जाता है।

प्रकार

अनुप्रास अलंकार

यमक अलंकार

श्लेष अलंकार

2.अर्थालंकार

अर्थालंकार

जहाँ शब्दों के अर्थ से चमत्कार स्पष्ट हो, वहाँ अर्थालंकार माना जाता है।

प्रकार

उपमा अलंकार

रूपक अलंकार

उत्प्रेक्षा अलंकार

उपमेयोपमा अलंकार

अतिशयोक्ति अलंकार

उल्लेख अलंकार

विरोधाभास अलंकार

दृष्टान्त अलंकार

विभावना अलंकार

भ्रान्तिमान अलंकार

सन्देह अलंकार

व्यतिरेक अलंकार

असंगति अलंकार

प्रतीप अलंकार

अर्थान्तरन्यास अलंकार

मानवीकरण अलंकार

वक्रोक्ति अलंकार

अन्योक्ति अलंकार

जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है, वह शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख भेद हैं।

अनुप्रास

अनुप्रास अलंकार

जिस रचना में व्यंजन वर्णों की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

जैसे

मुदित महीपति मंदिर आए।

सेवक सुमंत्र बुलाए।

यहाँ पहले पद में 'म' वर्ण की और दूसरे वर्ण में 'स' वर्ण की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। इसके निम्न भेद है:-

यमक

यमक अलंकार

जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है।

जैसे

काली घटा का घमण्ड घटा।

यहाँ 'घटा' शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'घटा' शब्द 'वर्षाकाल' में उड़ने वाली 'मेघमाला' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और दूसरी बार 'घटा' का अर्थ है 'कम हुआ'। अतः यहाँ यमक अलंकार है।

श्लेष

श्लेष अलंकार

जहाँ किसी शब्द का अनेक अर्थों में एक ही बार प्रयोग हो, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

जैसे

मधुवन की छाती को देखो,

सूखी कितनी इसकी कलियाँ।

यहाँ 'कलियाँ' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है, किन्तु इसमें अर्थ की भिन्नता है।

खिलने से पूर्व फूल की दशा

यौवन पूर्व की अवस्था

अलंकार=लक्षण\पहचान चिह्न-उदाहरण\ टिप्पणी ....

अनुप्रास= व्यंजन वर्णों की आवृत्ति-बँदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

प द स र की आवृत्ति

छेकानुप्रास=अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृति-बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास, सरस अनुरागा॥ (तुलसीदास)

पद पदुम में पद एवं सुरुचि सरस में सर - स्वरूप की आवृत्ति।

पद में प के बाद द, पदुम, में प के बाद द, सुरुचि में स के बाद र सरस में स के बाद र। क्रम की आवृत्ति।

वृत्त्यनुप्रास=अनेक व्यजनों की अनेक बार स्वरूपत व क्रमतः आवृत्ति-कलावती केलिवती कलिन्दजा

कल की 2 बार आवृत्ति - स्वरूपतः आवृत्ति,

क ल की 2 बार आवृत्ति - क्रमतः आवृत्ति

लाटानुप्रास=तात्पर्य मात्र के भेद से शब्द व अर्थ दोनों की पुनरुक्ति-लड़का तो लड़का ही है

शब्द की पुनरुक्ति सामान्य लड़का रूप बुद्धि शीलादि गुण संपन्न लड़का - अर्थ की पुनरुक्ति।

यमक=शब्दों की आवृत्ति (जहाँ एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग- अलग हों)-कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय वा खाए बौराय जग, या पाए बौराय। (बिहारीलाल)

कनक शब्द की एक बार आवृत्ति 1 धतूरा, 2 सोना।

श्लेष=एक शब्द में एक से अधिक अर्थ (जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो किंतु प्रसंग भेद में उसके अर्थ अलग-अलग हों)-रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून ॥(रहीम)

मोती→चमक, मानुष→प्रतिष्ठा, चून→जल

वक्रोक्ति-प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ

श्लेषमूला वक्रोक्ति=श्लेष के द्वारा वक्रोक्ति-एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है?

उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है॥ (गुरुभक्त सिंह)

यहाँ पूर्वार्द्ध में जहाँगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए 'अपर' (दूसरा) शब्द का प्रयोग किया है जबकि उत्तरार्द्ध में नूरजहाँ ने 'अपर' का 'बिना (पंख) वाला' अर्थ कर दिया है।

काकुमूला वक्रोक्ति=काकु (ध्वनि- विकार\ आवाज़ में परिवर्तन) के द्वारा वक्रोक्ति-आप जाइए तो। - आप जाइए।

आप जाइए तो? - आप नहीं जाइए।

वीप्सा-मनोभावों को प्रकट करने के लिए शब्द दुहराना (वीप्सा- दुहराना)-छिः, छिः; राम, राम; चुप, चुप; देखो, देखो;

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अर्थालंकार =

जिस अलंकार में अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है, वहाँ अर्थालंकार होता है। इसके प्रमुख भेद हैं।

उपमा-

उपमा अलंकार-

जहाँ एक वस्तु या प्राणी की तुलना अत्यंत सादृश्य के कारण प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार के चार तत्व होते हैं-

उपमेय - जिसकी उपमा दी जाए अर्थात जिसका वर्णन हो रहा है।

उपमान - जिससे उपमा दी जाए।

साधारण धर्म - उपमेय तथा उपमान में पाया जाने वाला परम्पर समान गुण।

वाचक शब्द - उपमेय और उपमान में समानता प्रकट करने वाला शब्द जैसे- ज्यों, सम, सा, सी, तुल्य, नाई।

उदाहरण

नवल सुन्दर श्याम-शरीर की,

सजल नीरद-सी कल कान्ति थी।

इस उदहारण का विश्लेषण इस प्रकार होगा। कान्ति- उपमेय, नीरद- उपमान, कल- साधारण धर्म, सी- वाचक शब्द

रूपक-

रूपक अलंकार-

जहाँ गुण की अत्यन्त समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोपन हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

जैसे

मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।

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