Hindi, asked by santhoshvijayam1560, 1 year ago

Bhavnatmak Pradushan par nivandh

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Answered by bhatiamona
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भावनात्मक प्रदूषण में हम मनुष्य अपनी निजी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण को के साथ खिलवाड़ करते है उसके कारण हमारे शरीर को बहुत सारे परेशानियों का सामना करना पढ़ता है , उसे हम  भावनात्मक प्रदूषण कहते है |

हम जैसे भी जहाँ मन किया धूम्रपान करते , अपने अधिकारों को अपने से बेहतर बनाकर, वे कहते हैं कि आप गिनती नहीं करते।  इसी कारण हम और सब की ज़िन्दगी को दाव पर लगते है |

हवा में मौजूद हानिकारक तत्वों के सांस के रास्ते शरीर में प्रवेश करने, मौसम में बदलाव होने या धूल में छिपे कणों से अस्थमा के लक्षण उभर सकते हैं | और ठंडी हवा, चरम भावनात्मक प्रतिक्रियाओं और शारीरिक दौड़धूप से भी परेशानी होती है |

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