bhavvachak sanghya ke vakya
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वह संज्ञा जिसे हम छू नहीं सकते केवल उन्हें अनुभव कर सकते हैं और इस संज्ञा का भाव हमारे भावों से सम्बन्ध होता है, जिनका कोई आकार या फिर रूप नहीं होता है। जैसे – मिठास, खटास, धर्म, थकावट, जवानी, मोटापा, मित्रता, सुन्दरता, बचपन, परायापन, अपनापन, बुढ़ापा, प्यास, भूख, मानवता, मुस्कुराहट, नीचता, क्रोध, चढाई, उचाई, चोरी आदि
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