Bhawan badha hai ya science?
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लॉर्ड केल्विन 19वीं सदी के महान वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं.
वो एक धर्मनिष्ठ ईसाई थे, जिन्होंने अपने धर्म और विज्ञान में सामंजस्य बिठाने का तरीका ढूंढा लेकिन इसके लिए उन्हें डार्विन सहित अपने ज़माने के वैज्ञानिकों से संघर्ष करना पड़ा.
उस वक़्त के इस संघर्ष की गूंज मौजूदा दौर में विज्ञान और धर्म की बहस में भी सुनाई देती हैं.
केल्विन पैमाने के अलावा यांत्रिक यानी मैकनिकल ऊर्जा और गणित के क्षेत्र में उनका शोध यूरोप और अमरीका को जोड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाली ट्रांस अटलांटिक केबल को बिछाने में अहम साबित हुआ है.
वो ब्रिटेन के पहले वैज्ञानिक थे जिन्हें हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में जगह मिली. उनका हमेशा ये विश्वास रहा कि उनकी आस्था से उन्हें बल मिला है और उनके वैज्ञानिक शोध को प्रेरणा मिली है.
आस्था और विज्ञान का सामंजस्य
केल्विन का मानना था कि विज्ञान का पूरा सम्मान होना चाहिए. उनका कहना था, "वैज्ञानिक मानते हैं कि विज्ञान ने सृष्टि को बनाने वाले में आस्था जताने से बचते हुए भी प्रकृति के सभी तथ्यों की व्याख्या करने का तरीका ढूंढ लिया है. मेरा मानना है कि ये धारणा निराधार है. मैंने जितना शोध किया, मुझे लगता गया कि विज्ञान में नास्तिकता की जगह नहीं है. अगर आप मज़बूती से सोचते हैं तो विज्ञान आपको भगवान में भरोसा रखने के लिए मजबूर करेगा."
केल्विन बाइबल पढ़ते थे और रोज़ाना चर्च जाते थे.
बेलफ़ास्ट के क्वींस विश्वविद्यालय के डॉक्टर एंड्र्यू होम्स बताते हैं, "अपने सभी कामों में केल्विन की कोशिश रही कि वो अपनी आस्था, राजनीति और व्यावसायिक हितों को मिला सकें"
केल्विन के कुछ सिद्धांत ग़लत साबित हुए, इनमें पृथ्वी की आयु की ऊपरी सीमा तय करना भी शामिल था.
केल्विन ने अंदाज़ा लगाया था कि ये सीमा कुछ करोड़ साल होगी.
डॉक्टर होम्स कहते हैं, "कुछ लोग केल्विन को ख़ारिज कर सकते हैं क्योंकि धरती के ठंडे होने को लेकर उनका काम ग़लत साबित हुआ था और उन्होंने विद्युत चुंबकत्व यानी इलेक्ट्रोमैग्नेटिज़्म पर मैक्सवेल के काम को गंभीरता से नहीं लिया था. लेकिन उन्हें 19वीं सदी प्रमुख भौतिकशास्त्रियों में गिना जाता है."
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