Bhed aur bhediya kahani ka sandesh
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“भेड़ और भेड़िया” कहानी ‘हरिशंकर प्रसाद’ द्वारा लिखी गई एक व्यंगात्मक कहानी है।
इस कहानी के माध्यम से लेखक ने राजनीति में व्याप्त चाटुकारिता पर करारा व्यंग किया है। उन्होंने अपनी व्यंगात्मक और कटाक्षात्मक शैली के द्वारा यह बताने की कोशिश की है कि राजनीति में चाटुकारिता ही फैशन बन गई है और बिना चाटुकारिता के राजनीति संभव नहीं है। झूठे वादे करना और फिर सत्ता में आते अपने वादे से मुकर जाता नेता लोगों का स्वभाव है।
कहानी की पृष्ठभूमि एक जंगल की है जिसमें सभी जानवरों को लगने लगता है कि वह विकास के सही स्तर पर पहुंच गए हैं और अब उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत शासन की जरूरत है। इसलिए उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपना लेना चाहिए। यह सुनकर भेड़ें जो अहिंसक और शाकाहारी प्राणी थी, उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने सोचा कि जब लोकतंत्र का शासन स्थापित हो जाएगा तो वह एक ऐसा कानून पास करवाएंगे, जिससे किसी को भी हिंसा करने का अधिकार ना हो। इससे उनकी जान सुरक्षित रहेगी। दूसरी तरफ भेड़िए इस चिंता में थे कि अगर ऐसा कोई कानून पास हो गया तो फिर उन्हें शिकार करने के लिए भेड़ें नहीं मिल पाएंगी और फिर या तो वो भूखे मर जाएंगे या फिर उन्हें घास फूस खाकर अपना जीवन बिताना पड़ेगा।
तब सियार जोकि भेड़िए के ऊपर ही निर्भर थे और उसी के बचे कुचे शिकार से अपना जीवन निर्वाह करते थे। उन्होंने चाटुकारिता करते हुए एक तरकीब निकाली और तीन सियारों ने भेड़िए जैसी वेशभूषा में खुद को रंग लिया और फिर उन चारों ने भेड़ों के सामने ऐसा नाटक नाटक प्रस्तुत किया कि भेड़ ने उन भेड़ियों रूपी सियारों को संत मानकर अपना नेता चुन लिया। जब भेड़िये नेता लिये गए तो उन्होंने सबसे पहले यह कानून पास किया कि प्रत्येक दिन सुबह, दोपहर, शाम को उनको खाने के लिए भेड़ें दी जाएं।
हमारी आज की राजनीतिक व्यवस्था भी लगभग ऐसी ही है। राजनीति में चाटुकारों की भरमार है। नेता लोग हमें भरमाते हैं, झूठे-झूठे वादे करते हैं फिर जब जनता उन्हें नेता चुन लेती है तो वह फिर अपने वादों से मुकर जाते हैं, और अपने मनमाफिक कार्यों को करने लगते हैं। कुल मिलाकर इस कहानी के माध्यम से लेखक आज की लोकत्रांत्रिक राजनीति का यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत किया है।
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