bhrastachar niband in hindi
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Explanation:भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना है-भ्रष्ट और आच२ण, जिसका शाब्दिक अर्थ है: आचरण से भ्रष्ट और पतित । ऐसा व्यक्ति, जिसका आचार पूरी तरह से बिगडू गया है, जो न्याय, नीति, सत्य, धर्म तथा सामाजिक, मानवीय, राष्ट्रीय मूल्यों के विरुद्ध कार्य करता है ।
भारत में भ्रष्टाचार मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में नजर आता है । यहां भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी अधिक गहरी हैं कि शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र बचा हो, जो इससे अछूता रहा है । राजनीति तो भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है ।
घोटालों पर घोटाले, दलबदल, सांसदों की खरीद-फरोख्त, विदेशों में नेताओं के खाते, अपराधीकरण-ये सभी भ्रष्ट राजनीति के सशक्त उदाहरण हैं । चुनाव जीतने से लेकर मन्त्री पद हथियाने तक घोर राजनीतिक भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है । ठेकेदार, इंजीनियर निर्माण कार्यो में लाखों-करोड़ों का हेरफेर कर रकम डकार जाते हैं ।
शिक्षा विभाग भी भ्रष्टाचार का केन्द्र बनता जा रहा है । एडमिशन से लेकर समस्त प्रकार की शिक्षा प्रक्रिया तथा नौकरी पाने तक, ट्रांसफर से लेकर प्रमोशन तक परले दरजे का भ्रष्टाचार मिलता है । पुलिस विभाग भ्रष्टाचार कर अपराधियों को संरक्षण देकर अपनी जेबें गरम कर रहा है ।
चिकित्सा विभाग में भी भ्रष्टाचार कुछ कम नहीं है । बैंकों से लोन लेना हो, पटवारी से जमीन की नाप-जोख करवानी हो, किसी भी प्रकार का प्रमाण-पत्र इत्यादि बनवाना हो, तो रिश्वत दिये बिना तो काम नहीं
होता । खेलों में भी खिलाड़ी के चयन से लेकर पुरस्कार देने तक भ्रष्टाचार देखने को मिलता है । इस तरह सभी प्रकार के पुरस्कार, एवार्ड आदि में भी किसी-न-किसी हद तक भ्रष्टाचार होता ही रहता है ।
मजाल है कि हमारे देश में कोई भी काम बिना किसी लेन-देन के हो जाये । सरकारी योजनाएं तो बनती ही हैं लोगों की भलाई के लिए, किन्तु उन योजनाओं में लगने वाला पैसा जनता तक पहुंचते-पहुंचते कौड़ी का रह जाता है । स्वयं राजीव गांधी ने एक बार कहा था: ”दिल्ली से जनता के विकास कें लिए निकला हुआ सौ रुपये का सरकारी पैसा उसके वास्तविक हकदार तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसे का हो जाता है ।”