bhumika of bahu ki vida p
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विनोद रस्तोगी द्वारा इस एकांकी को लिखा गया है। जो रस्तोगी जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।
समाज और परिवार इस एकांकी के केंद्र बिंदु में है।
जीवनलाल जैसे लालची लोगों की ओर कटाक्ष किया है रस्तोगी जी ने जो अपनी बहू की विदाई नहीं करते हैं क्योंकि उनको दहेज की रकम कम मिलती है।
दूसरी ओर जीवनलाल अपने बेटे को अपनी पुत्री को लाने के लिए उसके ससुराल भेजता है मगर उसकी पुत्री को भी दहेज न देने के कारण रोका जाता है।
तब जाकर जीवनलाल की सोच बदलती है जो बहू और बेटी में फर्क करता था। अंत में वह अपनी बहू की विदाई करता है।।
समाज और परिवार इस एकांकी के केंद्र बिंदु में है।
जीवनलाल जैसे लालची लोगों की ओर कटाक्ष किया है रस्तोगी जी ने जो अपनी बहू की विदाई नहीं करते हैं क्योंकि उनको दहेज की रकम कम मिलती है।
दूसरी ओर जीवनलाल अपने बेटे को अपनी पुत्री को लाने के लिए उसके ससुराल भेजता है मगर उसकी पुत्री को भी दहेज न देने के कारण रोका जाता है।
तब जाकर जीवनलाल की सोच बदलती है जो बहू और बेटी में फर्क करता था। अंत में वह अपनी बहू की विदाई करता है।।
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This one is written by Vinod Rastogi. One of the famous works of Rastogi ji
Society and family are in the center point of this one.
Rastogi has not taken a farewell to his daughter-in-law because he gets less money for dowry.
On the other hand, Lifelong sends her son to bring her daughter to her in-laws, but her daughter is also stopped for not paying dowry.
Then there comes a change in the life of the life-lover who had differentiated between daughter-in-law and daughter. In the end, he farewell to his daughter-in-law.
Society and family are in the center point of this one.
Rastogi has not taken a farewell to his daughter-in-law because he gets less money for dowry.
On the other hand, Lifelong sends her son to bring her daughter to her in-laws, but her daughter is also stopped for not paying dowry.
Then there comes a change in the life of the life-lover who had differentiated between daughter-in-law and daughter. In the end, he farewell to his daughter-in-law.
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