Bhumika par nibandh
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राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण एवं संवैधानिक पद पर राजनेताओं की नियुक्ति एवं उनके बार-बार स्थानांतरण के बहाने एक बार फिर राज्यपालों की नियुक्ति, उनके अधिकारों को लेकर कुछ सवाल उठने लगे हैं कि राष्ट्रपति की भांति राज्यपाल का भी क्यों निर्वाचन नहीं किया जाता? एक बार यह प्रस्तावित किया गया था, लेकिन इस विचार को रद्द कर दिया गया ।
संघीय प्रणाली में राज्यपाल प्रांत का उसी तरह सांविधानिक प्रमुख होता है जैसा कि केंद्र में राष्ट्रपति । भारतीय लोकतंत्र इन दोनों की अक्षुण्णता पर निर्भर करता है । संविधान सभा में 30 दिसंबर, 1948 को डॉ बी. आर. अंबेडकर राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति और लोकसभा को भंग करने के अधिकार पर विचार व्यक्त कर रहे थे तब मोहम्मद ताहिर ने उनसे पूछा कि इस आधार पर राज्यों में राज्यपाल और मंत्रियों की स्थिति की व्याख्या कैसे की जायेगी, जहाँ विवेकाधिकार राज्यपाल के पास होगा? जवाब में डॉ. अंबेडकर ने कहा कि राज्यपाल की स्थिति राज्य में ठीक वैसी ही होगी, जैसी कि केंद्र में राष्ट्रपति की ।
संघीय प्रणाली में राज्यपाल प्रांत का उसी तरह सांविधानिक प्रमुख होता है जैसा कि केंद्र में राष्ट्रपति । भारतीय लोकतंत्र इन दोनों की अक्षुण्णता पर निर्भर करता है । संविधान सभा में 30 दिसंबर, 1948 को डॉ बी. आर. अंबेडकर राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति और लोकसभा को भंग करने के अधिकार पर विचार व्यक्त कर रहे थे तब मोहम्मद ताहिर ने उनसे पूछा कि इस आधार पर राज्यों में राज्यपाल और मंत्रियों की स्थिति की व्याख्या कैसे की जायेगी, जहाँ विवेकाधिकार राज्यपाल के पास होगा? जवाब में डॉ. अंबेडकर ने कहा कि राज्यपाल की स्थिति राज्य में ठीक वैसी ही होगी, जैसी कि केंद्र में राष्ट्रपति की ।
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भारतीय समाज में नारी की भूमिका
नारी का सम्मान करना एवं उसके हितों की रक्षा करना हमारे देश की सदियों पुरानी संस्कृति है । यह एक विडम्बना ही है कि भारतीय समाज में नारी की स्थिति अत्यन्त विरोधाभासी रही है । एक तरफ तो उसे शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है तो दूसरी ओर उसे ‘बेचारी अबला’ भी कहा जाता है । इन दोनों ही अतिवादी धारणाओं ने नारी के स्वतन्त्र बिकास में बाधा पहुंचाई है ।
प्राचीनकाल से ही नारी को इन्सान के रूप में देखने के प्रयास सम्भवत: कम ही हुये हैं । पुरुष के बराबर स्थान एवं अधिकारों की मांग ने भी उसे अत्यधिक छला है । अत: वह आज तक ‘मानवी’ का स्थान प्राप्त करने से भी वंचित रही है ।
सदियों से ही भारतीय समाज में नारी की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है । उसी के बलबूते पर भारतीय समाज खड़ा है । नारी ने भिन्न-भिन्न रूपों में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । चाहे वह सीता हो, झांसी की रानी, इन्दिरा गाँधी हो, सरोजनी नायडू हो ।
किन्तु फिर भी वह सदियों से ही क्रूर समाज के अत्याचारों एवं शोषण का शिकार होती आई हैं । उसके हितों की रक्षा करने के लिए एवं समानता तथा न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है । महिला विकास के लिए आज विश्व भर में ‘महिला दिवस’ मनाये जा रहे हैं । संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग की जा रही है ।
इतना सब होने पर भी वह प्रतिदिन अत्याचारों एवं शोषण का शिकार हो रही है । मानवीय क्रूरता एवं हिंसा से ग्रसित है । यद्यपि वह शिक्षित है, हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है तथापि आवश्यकता इस बात की है कि उसे वास्तव में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्रदान किया जाये । समाज का चहुँमुखी वास्तविक विकास तभी सम्भव होगा ।
नारी का सम्मान करना एवं उसके हितों की रक्षा करना हमारे देश की सदियों पुरानी संस्कृति है । यह एक विडम्बना ही है कि भारतीय समाज में नारी की स्थिति अत्यन्त विरोधाभासी रही है । एक तरफ तो उसे शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है तो दूसरी ओर उसे ‘बेचारी अबला’ भी कहा जाता है । इन दोनों ही अतिवादी धारणाओं ने नारी के स्वतन्त्र बिकास में बाधा पहुंचाई है ।
प्राचीनकाल से ही नारी को इन्सान के रूप में देखने के प्रयास सम्भवत: कम ही हुये हैं । पुरुष के बराबर स्थान एवं अधिकारों की मांग ने भी उसे अत्यधिक छला है । अत: वह आज तक ‘मानवी’ का स्थान प्राप्त करने से भी वंचित रही है ।
सदियों से ही भारतीय समाज में नारी की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है । उसी के बलबूते पर भारतीय समाज खड़ा है । नारी ने भिन्न-भिन्न रूपों में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । चाहे वह सीता हो, झांसी की रानी, इन्दिरा गाँधी हो, सरोजनी नायडू हो ।
किन्तु फिर भी वह सदियों से ही क्रूर समाज के अत्याचारों एवं शोषण का शिकार होती आई हैं । उसके हितों की रक्षा करने के लिए एवं समानता तथा न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है । महिला विकास के लिए आज विश्व भर में ‘महिला दिवस’ मनाये जा रहे हैं । संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग की जा रही है ।
इतना सब होने पर भी वह प्रतिदिन अत्याचारों एवं शोषण का शिकार हो रही है । मानवीय क्रूरता एवं हिंसा से ग्रसित है । यद्यपि वह शिक्षित है, हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है तथापि आवश्यकता इस बात की है कि उसे वास्तव में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्रदान किया जाये । समाज का चहुँमुखी वास्तविक विकास तभी सम्भव होगा ।
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