Social Sciences, asked by parchaaditya12, 4 months ago

bigot shabd ko paribhashit Karen​

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Answered by kanishkamaharana
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जिन्दगी हौसले की उड़ान है, लेकिन दो वक्त की रोटी नहीं मिले तो हौसला टूटने भी लगता है। कई एेसे विरले भी होते हैं, जो परिस्थिति अनुकूल नहीं होने पर भी परिवार पालने के लिए कुछ एेसा करते हैं, जो कहने, सुनने व देखने में अजीब लगता है।

छोटा पुष्कर के रूप में प्रसिद्ध त्रिवेणी संगम (बीगोद) पर एेसे ही नजारे दिखाई देते हैं। यहां कुछ परिवारआत्मा की शांति के लिए बहाई दिवंगतों की अस्थियों में रोजी-रोटी तलाशते है। कई बार सोने-चांदी के टुकड़े मिलने पर वे पवित्र त्रिवेणी संगम को प्रणाम करने लगते हैं।

भीलवाड़ा जिले में तीन नदियों बनास, बेड़च व मेनाली का संगम देशभर के पवित्र स्थलों में गिना जाता है। इस त्रिवेणी संगम को छोटा पुष्कर भी कहा जाता है। तीज, त्योहार, पर्वों पर आस्था की डुबकी मारने देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंचते है। प्रदेश के लोग त्रिवेणी संगम को हरिद्धार के रूप में भी मानते है। लोग दिवंगत परिजनों की अस्थियां यहां विसर्जित करते हैं। यहां प्रवाहित की गई अस्थियों को किनारे से हटाने व उनके गलन के लिए यहां स्थित शिव मंदिर के ट्रस्ट प्रबंधन के कर्मचारी काम करते हैं।

हाथ लग जाए खजाना

संगम पर विसर्जित अस्थियों में सोने व चांदी के जेवरात, सिक्के या दिवंगतों की प्रिय वस्तु रखी जाती है। एेसे में यहां कुछ परिवार डेरा डाले हुए हैं। ये लोग संगम के पानी में लोहे की छलनी व कपड़े का जाल लेकर उतर जाते हैं और यहां प्रवाहित की गई अस्थियों को छानते हैं। रोजाना पांच से छह घंटे इसी काम में लगे रहते हैं। भरी सर्दी में भी ठंडे पानी में डुबकी लगाते हैं। अस्थियों में चांदी की अगूंठी, सिक्के, पायेजब, चेन या सोने के गहने भी मिल जाते हैं। कई बार वर्षों पूर्व दिवगंत हुए लोगों के तर्पण में अस्थियां (फूल) उपलब्ध नहीं होने पर चांदी के फूल बनवाकर विसर्जित किए जाते हैं। यहां लगे परिवार इन सबसे गुजारा करते हैं। कई बार दिनभर अस्थियों का पानी छानने के बाद भी खाली रहना पड़ता है।

1400 वर्ष पूर्व शिवलिंग का उद्भव, ७५ साल पुराना मंदिर

त्रिवेणी संगम स्थित शिवमंदिर के पुजारी रामपुरी बताते हैं कि मंदिर करीब ७५ वर्ष पुराना है, लेकिन कहा जाता है कि संगम स्थल पर करीब 1400 वर्ष पूर्व शिवलिंग का उद्भव हुआ था। यह स्थल लोगों की आस्था का केन्द्र है। यहां धाकड़ समाज के सहयोग से शिव मंदिर का निर्माण हुआ। त्रिवेणी संगम पर दिवंगतों की अस्थियां प्रवाहित करने की पुख्ता व्यवस्था है। कुछ लोग यहां पानी में विसर्जित अस्थियों व राख में जेवरात व धातु के टुकड़े तलाशते हैं। मंदिर प्रबंधन की ओर से संगम स्थल की सफाई के लिए कर्मचारी रखे हुए हैं।

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