Hindi, asked by abdulmabood3995, 11 months ago

Biography of “Shaheed Bhagat Singh” in Hindi

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Answered by knligma
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जन्म: 27 सितम्बर, 1907

निधन: 23 मार्च, 1931

उपलब्धियां: भारत के क्रन्तिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी, पंजाब में क्रांति के सन्देश को फ़ैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया, भारत में गणतंत्र की स्थापना के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रीय विधान सभा में बम फेका

शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गया। उनके लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालात को बदलना। भगत सिंह ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए। उनके अनुसार, ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने और भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना जरुरी था।

हालाँकि अंग्रेज सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत सिंह व्यक्तिगत तौर पर आतंकवाद के आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ़ इरादे जैसी विशेषता के कारण भगत सिंह को राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे। ऐसे समय पर जब गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र विकल्प थे, भगत सिंह एक नयी सोच के साथ एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आये।

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Answered by deepak7087
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देश की स्वाधीनता के लिए जिन क्रांतिकारियों ने आगे बढकर अपनी कुर्बानियां दो, उनमें शाहीद भगत सिंह का नाम पहली पंक्ति में उगता है।

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 में लाख-पुर जिले के बगा (अब पाकिस्तान में) ग्राम में हुआ था । वे एक क्रांतिकारी परिवार से थे, इसलिए जब उनका जन्म हुआ था तो उनके पिता जेल में थे ।

उनके जन्म पर उनके पिता को उन्हें देखने के लिए कुछ दिन की छुट्टी दी गई थी भगत सिंह की माता का नाम श्रीमती विद्यावती था । क्रांतिकारी परिवार से होने के कारण उनमें भी क्रांति की भावना का होना स्वाभाविक ही था । उनकी प्रारभिक शिक्षा गाव में ही हुई थी, उसके बाद उन्हें लाहौर में शिक्षा लेने भेजा. गया था, लेकिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियावाला बाग हत्याकांड के नरसंहार ने भगत सिंह के दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला और सन् 1921 ने वे गांधीजी के सारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में कूद पडे ।

उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीति का कड़ा विरोध किया परतंत्रता की बेडियों में जकडी भारत माता को अंग्रेज़ी शासन से मुक्त करवाने के लिए आम जनता में क्रांति की भावना का होना जरूरी था इसलिए भगत सिंह ने एक निर्णायक फैसला लिया उन्होंने अगपने साथियों के साथ अस्सेम्ब्ली में बम फेंकने की योजना को पूर्ण रूप दिया और 8 अप्रैल, 1929 को अपना यह कार्य पूर्ण किया । इस तरह भगत सिंह ने फांसी के फंदे तक पहुँचने का रास्ता न केवल चुना, अपितु एक्) सुनियोजित ढंग से अपनी कुर्बानी के लिए परिस्थितियों को अधिकाधिक अनुकूला बनाया ।

उन्होंने अपने नेता चंद्रशेखर आजाद की ‘मारो और भाग जाओ, ताकि फिर मार सकी और शत्रु को अधिक-से-अधिक नुकसान पहुंचा सको’ शैली को अपने लिए नहीं चुना, बल्कि फांसी के क्रांतिवीर वेलां की सनसनीखेज क्रांति शैली को अपना आदर्श बनाया । उन्होंने स्वाधीनता की बलि-वेदी पर अपने प्राणों का उत्सर्ग करने के लिए भारत की परिस्थितियों के अनुकूल क्रांति का पूरा दर्शन तैयार किया । एक ऐसा दर्शन, जो क्रांतिकारी की हर गतिविधि से देश की जनता को सीधा जोड़ दे और उसकी सहानुभूति क्रांतिकारी तक पहुंचने लगे ।

इससे एक साथ दो काम होने थे-एक क्रांतिकारी के लिए प्रेरणा का स्रोत खुलता था, दूसरे उसे यातना देने अथवा फांसी देने की स्थिति में देश में क्रांति की ज्वाला भड़कनी थी । भगत सिंह अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल हुए । उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों से सरकार बौखला गई, वह अपना संतुलन खो बैठी और जल्दी-से-जल्दी उन्हें फांसी पर लटकाने का फैसला कर बैठी, यही वे चाहते थे ।

इस तरह 23 मार्च, 1931 की सायंकाल को भगत सिंह सहित उनके दोनों साथियों सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया और इस तरह एक देशभक्त ने हंसते-हंसते मातृभूमि की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दे दी । आज हमारे बीच वे देशभक्त तो नहीं, लेकिन उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर हम अपना जीवन धन्य कर सकते हैं ।

नीचे भगत सिंह के ऊपर एक निबंध भी दिया गया है, जिसे जीवनी के रूप में भी पढ़ा जा सकता है.

शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह

भारत का इतिहास देश भक्तों की कुरबानियों से भरा हुआ है । इन देश भक्तों ने अंग्रेजों से टक्कर ली त था देश को आजाद करवाने के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए । ऐसे देशभक्तों में भगत सिंह भी एक महान देशभक्त थे । उनका जन्म 11 नवंबर, 1907 ईस्वी को जिला लायलपुर ( पाकिस्तान) में हुआ था । इनका गांव खटकड़ कला जिला नवांशहर में है । इनके पिता सरदार कृष्ण सिंह कांग्रेस के एक प्रसिद्ध नेता थे । इनके चाचा अजीत सिंह पगड़ी संभाल जट्टा लहर के प्रसिद्ध नेता थे । इस प्रकार देशभक्ति का जच्चा इनमें बचपन से हो था ।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से ही प्राप्त की । उन शिक्षा के लिए डी .ए .वो स्कूल लाहौर में दाखिल हो गए । दसवीं की परीक्षा पास करने के परवात् वे लाहौर के ही नैशनल कलेज में दाखिल -हो गए । बचपन में -ही जब उन्होंने जलियाँवाला बाग के खूनी साके की घटना के बारे में सुना ‘तो उनका खून खोल उठा ।

भगत सिंह तथा उनके साथियों ने लाला जी की मौत का बदला, पुलिस कप्तान सकाट को मार कर लेने का फैंसला किया । परंतु सकट के स्थान पर सांडरस कों गोली मार दी गई । सारे देश में हाहाकार मच गया । पुलिस भगत सिंह तथा उनके साथियों की तलाश करने लगी । भगत सिंह तथा राजगुरु दुर्गा भाभी की सहायता से गाड़ी -में चढ़ गए । इस प्रकार वे पुलिस से बच गए । 8 अप्रैल, 1929 ई. को भगत सिंह तथा उसके साथी बी.के.दत्त ने असैम्बली हल में धमाकेदार बंब गिराकर गूंगी तथा बहरी अंग्रेज सरकार के हिलाकर रख दिया । इन -बो का गिराने का मकसद किसी -की जान लेना -नहीं था । बंब गिराने के वाद भगत सिंह तथा बी .के. दत्त ने इनकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दे दी ।

अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह त था उसकेके साथियों पर देश होही होने का मुकद्दमा चला दिया । पहलै इन्हें उस कैद की -सजा सुनाई गई जौ वाद में फांसी की सजा ‘में तबदील कर दी गई । उन्हें जेल में भी कई प्रकार के कष्ट दिए गए । परंतु भगत सिंह ने उफ तक न की । वे अक्सर विस्मिल का यह गीत गुनगुनाया करते थे ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

23 मार्च, 1931 ई. की रात को भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फाँसी दी गई । उनकी लाशें उनके परिवारजनों को न देकर फिरोजपुर के समीप हुसैनीवाला नामक स्थान पर जला टी गई । इन तीनों की शहीदी देशवासियों के लिए आज़ादी का पैगाम लेकर आई । इनकी शहीदी के पश्चात् स्वतंत्रता संग्राम और भी तेज हो गया और 15 अगस्त, 1947 इड्. को देश आज़ाद हो गया! भगत सिंह , राजगुरु त था सुखदेव की शहीदी को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष हुसैनीवाला में मेला लगता है । बड़ी संख्या में लोग इन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्रित होते है ।

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