बलवन का र राजत्व का सिद्धांत को समझाइए
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बलबन का राजत्व सिद्धान्त शक्ति, प्रतिष्ठा और न्याय पर आधारित था। ... 2-बलबन ने राजत्व को दैवीय संस्था मानते हुए कहा कि सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि (नियाबत-ए-खुदाई) होता होता है। अतः उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात है। सुल्तान को कार्य करने की प्रेरणा व शक्ति अल्लाह से प्राप्त होती है।
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Explanation:
बलबन 1266 ई से 1287 ई तक रहा और शासन किया।
- बलबन स्वयं चालीसा या चहलगनी का सदस्य था लेकिन उसने चहलगनी की शक्ति को नष्ट कर दिया और ताज की प्रतिष्ठा को फिर से प्राप्त किया।
- उसने एक मजबूत केंद्रीकृत सेना बनाई और सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज़ की स्थापना की।
- उसनें वित्त विभाग (दीवान-ऐ-वज़रात) से सैन्य मामलों को अलग करने का आदेश दिया।
- उसने सुल्तान को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया। फारसी अदालत के आदर्श ने बलबन के राजत्व की अवधारणा को प्रभावित किया। उसने ज़िल-ए-इलाही (ईश्वर की छाया) की उपाधि धारण की और लोगों को प्रभावित किया कि राजा ईश्वर (नियाबत-ए-ख़ुदाई) के उप-अधिकारी थे।
उन्होंने ईरानी समारोहों में सिजदा और पैबोस पर जोर दिया।
- वह फारसी साहित्य के संरक्षक था और अमीर खुसरो का विशेष रूप से समर्थक था।
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