बर्तनों की सफाई हेतु पाउडर पर विज्ञापन तैयार कीजिए।
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कानपुर के फजलगंज चौराहे पर एक छह मंजिली सफेद ईमारत पर दिखा सिर्फ घड़ी. इतना बड़ा विज्ञापन, क्या है यह? यह है घड़ी डिटर्जेंट का दफ्तर, जिसने न सिर्फ अपने धंधे का वक्त बदला, बल्कि बाजार के बड़े ब्रांड्स की भी धुलाई कर दी. यह मुरलीधर ज्ञानचंदानी का परिवार है. इस परिवार ने जिस धंधे में भी हाथ आजमाया वह सफल रहा. इस परिवार का साबुन से पुराना नाता है.
सबसे पहले परिवार ने फर्रुखाबाद में ग्लिसरीन से बनने वाले आॅयल सोप का कारखाना लगाया. फिर परिवार कानपुर आया. इसके बाद परिवार ने मनोज सोप्स और राहुल सोप्स नाम से कपड़े धोने का साबुन बाजार में उतारा. 1987 में जब हिंदुस्तान में निरमा, व्हील और सर्फ जैसे ब्रांड बाजार पर कब्ज़ा जमाये हुए थे, उसी वक्त ज्ञानचंदानी परिवार ने महादेव सोप्स प्राइवेट लिमिटेड के तले घड़ी डिटर्जेंट पाउडर लांच किया. निरमा 1969 से बाजार में रहा और उसकी पहुंच घर-घर तक थी. उससे कुछ अलग करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी. उस वक्त डिटर्जेंट पीले या नीले रंग के होते थे.
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