Brij bhasha ke shabd aru ko khadi hindi bhasha me kya likhen ge
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इस बात के प्रमाण के लिये सूरदास द्वारा ब्रजभाषा के इन पदों को पढ़िये...
ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
बृंदावन गोकुल तन आवत सघन तृनन की छाहीं
प्रात समय माता जसुमति ‘अरु’ नंद देखि सुख पावत
माखन रोटी दह्यो सजायौ अति हित साथ खवावत
गोपी ग्वाल बाल संग खेलत सब दिन हंसत सिरात
सूरदास, धनि धनि ब्रजबासी जिनसों हंसत ब्रजनाथ
अर्थात श्रीकृष्ण उद्धव से कहते हैं कि मुझसे ब्रज भुलाए नहीं भुलाया जाता। मुझे वृंदावन के उन वृक्षों की याद आती है, जिनकी छांव में मैं सुकून पाता था। सवेरे के समय में मैया यशोदा और नंद बाबा को देखकर अपार सुख का अनुभव करता था। मैया यशोदा मुझे माखन, रोटी, दही बड़े प्रेम से खिलाती थी। अपने संगी साथी ग्वालों के साथ खेलते खेलते मेरा पूरा दिन हँसी-खुशी से निकल जाया करता था। सूरदास जी कहते हैं कि ऐसे बृजवासी धन्य हैं, जिनके साथ कृष्ण हँसी उसी के साथ खेला करते थे।
इन पदों में एक वाक्यांश है....जसुमति अरु नंद
जिसका अर्थ होगा....यशोदा मैया और नंदबाबा
यहाँ पर ‘अरु’ का प्रयोग ‘और’ के लिये किया गया है।
इसलिये स्पष्ट है, कि ब्रजभाषा के ‘अरु’ का अर्थ हिंदी खड़ी बोली में ‘और’ होता है।