Hindi, asked by sarathrajendran36481, 10 months ago

बतरस लालच लाल की मुरली धरि लुकाई। काव्य पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिये।

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Answer:

भौन में होत है, नैनन ही सों बात॥

छला छबीले लाल को, नवल नेह लहि नारि।

चूमति चाहति लाय उर, पहिरति धरति उतारि।

सघन कुंज घन, घन तिमिर, अधिक ऍंधेरी राति।

तऊ न दुरिहै स्याम यह, दीप-सिखा सी जाति॥

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।

सौंह करै, भौंहन हँसै, देन कहै नटि जाय॥

कर-मुँदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।

पीठि दिये निधरक लखै, इकटक डीठि लगाइ॥

दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।

परति गाँठि दुरजन हिये, दई नई यह रीति॥

पलनु पीक, अंजनु अधर, धरे महावरु भाल।

आजु मिले सु भली करी, भले बने हौ लाल॥

अंग-अंग नग जगमगैं, दीपसिखा-सी देह।

दियो बढाएँ ही रहै, बढो उजेरो गेह॥

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