बदलू के मन में ऐसी कौन सी व्यथा थी जो लेखक से छिपी ना रह सके
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बदलू के मन में एक व्यथा थी, जो लेखक से छिपी ना रह सखी। बदलू लाख की चूड़ियाँ बनाता था। जिनसे उसका रोजगार चलता था और उसका पेट पलता था। मशीनों के आ जाने के कारण अब काँच की चूड़ियों का प्रचलन बढ़ गया था, जिससे बदलू की बनाई लाख की चूड़ियाँ अब कोई नहीं खरीदता था। इस कारण उसकी चूड़ियों का काम बंद हो गया था और उसके सामने रोजगार का गहरा संकट आ गया था। अपने मन की व्यथा को बदलू लेखक के समक्ष छुपा ना सका।
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बदलू' कहानी की दृष्टि से पात्र है और भाषा की बात (व्याकरण) की दृष्टि से संज्ञा है। किसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, विचार अथवा भाव को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा को तीन भेदों में बाँटा गया है (क) व्यक्तिवाचक संज्ञा, जैसे-लला, रज्जो, आम, काँच, गाय इत्यादि (ख) जातिवाचक संज्ञा, जैसे–चरित्र, स्वभाव, वजन, आकार आदि द्वारा जानी जाने वाली संज्ञा। (ग) भाववाचक संज्ञा, जैसे-सुंदरता, नाजुक, प्रसन्नता इत्यादि जिसमें कोई व्यक्ति नहीं है और न आकार या वजन। परंतु उसका अनुभव होता है। पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाएँ चुनकर लिखिए।
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Answer:
बदलू लाख की चूड़ियाँ बेचा करता था परन्तु जैसे-जैसे काँच की चूडियों का प्रचलन बढ़ता गया उसका व्यवसाय ठप पड़ने लगा। अपने व्यवसाय की यह दुर्दशा बदलू को मन ही मन कचौटती थी। बदलू के मन में इस बात कि व्यथा थी कि मशीनी युग के प्रभावस्वरुप उस जैसे अनेक कारीगरों को बेरोजगारी और उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। अब लोग कारीगरी की कद्र न करके दिखावटी चमक पर अधिक ध्यान देते हैं। यह व्यथा लेखक से छिपी न रह सकी।