बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है 500 शब्द का निबंध
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Explanation:हरिशंकर परसाईजी के द्वारा उद्धृत किया गया है " परिवर्तन जीवन का अनंत क्रम है "। जीवन वस्तुतः परिवर्तनशील ही है और यह परिवर्तन या बदलाव मनुष्य के विकास में साधक बनकर समय-समय पर आगंतुक के रुप में आते हैं और कालांतर में पुनः एक नए परिवर्तन द्वारा तिरोहित हो कर समय की धारा में प्रवाहित हो जाते हैं | इस तरह ये क्रम सातत्य रूप से गतिमान होता रहता है | मनुष्य के द्वारा इनका स्वीकार एक सधी हुई मानसिकता का प्रतीक और बुद्धिमत्ता तथा प्रगति शील होने का द्योतक है।
जब हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखते हैं तो पाते हैं कि हमारे अतीत में कई प्रकार के बदलाव आए जिनका कभी कट्टरता से कभी सौजन्यता से, कभी सद्भाव से तो कभी दुर्भाव से अवगाहन किया गया । यह इस तथ्य का परिचायक है कि जीवन में जो घटनाएं घट चुकी हैं उन्ही से सीख कर मनुष्य आगे बढ़ना चाहता है। वह अग्रसर होता है जब वह स्वयं को इन बदलावों में ढाल लेता है |
जिस तरह एक स्थान पर रुका हुआ पानी गंदला हो जाता है। बहती हुई नदियों का जल स्वच्छ रहता है । उसी प्रकार प्रवाहमान जीवन की धारा जब कई प्राचीन मापदंडों को परिष्कृत कर संस्कृति केे नवीन अध्याय प्रस्तुत करती है तो विकास के नए दरवाजे खुलते हैं।
सामाजिक परिपेक्ष्य मे देखे तो आज कई ऐसी सामाजिक परम्पराएं तथा प्रथाएँ है जो समय के साथ या तो तिरोहित हो गयी या दम तोड़ने की कगार पर है | क्षेत्र कोई भी हो आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक या फिर सामाजिक सभी क्षेत्रों के भीतर बदलाव घटित हुए है | इन बदलावों को स्वीकार करने वाली मानसिक वृत्ति ही उन्नती कर सकती है | यद्यपि जो मानसिकता इसे स्वीकार नहीं कर पायेगी वह या तो स्वयं पिछड़ जायेगी या उपेक्षित होकर पीड़ा का दंश झेलती रहेगी | इस पीड़ा से यदि उबरना हो तो बदलाव को अपना लेना ही एकमात्र विकल्प तथा बौद्धिकता का परिचय है |
जिस तरह मनुष्य जीवन में एक व्यक्ति शैशव से वृद्धावस्था तक प्रत्येक अवस्था में सतत परिवर्तित होता रहता है यद्यपि वह अधिकतर युवावस्था की ही कामना रखता है किन्तु ये संभव नहीं है | बदलाव या परिवर्तन सृष्टि का नियम है | यह भी उल्लेखनीय है कि विभिन्न अवस्थाओ में मनुष्य की रुचियाँ भिन्न - भिन्न हो जाती है | जो आज वर्तमान है कल अतीत बन जाएगा | प्रत्येक वर्तमान को उसकी बदलती रूपरेखा के साथ सहर्ष मान्यता प्रदान कर स्वीकृति देना तथा अपना लेना सुख - समृद्धि के द्वार खोलकर बुद्धिमत्ता का मापदंड प्रस्तुत करना ही है | मनुष्य को चाहिए कि वह लकीर का फकीर न
बन कर वर्तमान में जिए क्योंकि प्रत्येक क्षण बदलता हुआ आगे बढ़ जाता है। साहिर लुधियानवी जी की ये पंक्तियां उल्लेखनीय है---
" आज मै हूँ जहाँ, कल कोई और था
ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था "
अल्बर्ट आइंस्टीन का यह कथन “बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है” हमारे दैनिक जीवन के हर पहलू के लिए सत्य प्रतीत होता है, इस लेख में हमने इस कथन (बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है) के ऊपर 500 शब्दों में एक निबंध लिखा है।
प्रस्तावना
पृथ्वी पर अब जन्मे सबसे महानतम वैज्ञानिकों में से एक अल्बर्ट आइंस्टीन के द्वारा कहा गया यह कथन “बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है” शत प्रतिशत सत्य है। इस कथन के मुताबिक वही व्यक्ति बुद्धिमान होता है जो अपने आप को परिस्थितियों के अनुरूप बदलने की क्षमता रखता है।
हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार की एक टिपण्णी है कि “परिवर्तन जीवन का अनंत क्रम है“, इंसान हो या प्रकृति हर कोई अपने आप में बदलाव लेकर आते रहता है और जीवन कि गति आगे बढ़ते रहती है।
परिवर्तन ही संसार का नियम है
किसी ने ठीक ही कहा है परिवर्तन ही संसार का नियम है, इसी परिवर्तन के फलस्वरूप आग का एक गोला पृथ्वी बनता है और इसी परिवर्तन से उस गोले पर आज जीवन संभव है और लाखों करोड़ो तरह के जीव-जंतु अपना जीवन यापन कर रहे है।
“बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है” से तात्पर्य
‘बदलने की क्षमता ही बुद्धिमता का माप है’ इसका आशय यही है कि समय के साथ अपने आप को सही दिशा में बदल लेने में ही समझदारी है। परिस्थितियों के मुताबिक हमें अपने विचार और व्यवहार में बदलाव लेकर आना चाहिए और इसी कार्य में हमारी बुद्धिमानी भी है।
हर रोज़ कितना कुछ बदल जाता है हमें खबर भी नहीं होता है, एक तरफ प्रकृति ख़ुद को बदलते रहती है तो दूसरी तरफ विज्ञान।
मनुष्य कि बुद्धि इतनी अग्रसर तो हो ही गयी है कि वह सही और गलत में फर्क कर सके, भले ही सही को चुनना कठिन होता है लेकिन समझदारी को इसी में है कि गलत अवधारणाओं को पीछे छोड़ अपने आप में, अपने समाज में और इस पुरे मानव जाती में बदलाव लेकर आये।
हम तभी कुछ सीख पाते है जब हम अपने पुराणी सोच को बदलने कि कोशिश करते है, यह समाज, यह देश और पूरी मानव जाती तभी बदल पायेगी जब हम कुछ नया सीखेंगे, कुछ नया रचेंगे और कुछ नए बदलाव लेकर आएंगे।
कितना कुछ है बदलने को
आज भी हम जब अपने आसपास नज़र उठाकर देखते है तो न जाने कितनी ऐसी बुराइयां देखने को मिलती है जिसे बदलना चाहिए, कही किसी को बेटा न होने का दुःख है तो कही कोई बेटी को स्कूल जाने से रोक रहा है। कही कोई बेटी कि व्याह बाल्यावस्था में कर रहा तो कोई अपने बुजुर्ग माता पिता को यूँ ही छोड़ शहर को चला गया।
पर्यावरण के हो रहे खिलवाड़ से हर कोई अपने आप को बचाते फिरता है, जब तक जिम्मेदारियों को ख़ुद नहीं समझ पाएंगे शायद जिस बदलाव कि बात हम कर रहे है वह संभव ही नहीं हो पायेगा और हम सिर्फ बातें ही करते रह जायेंगे।
कई बार तो हमें कुछ बदलने के लिए कुछ करना ही नहीं होता है एक छोटी सी बात, एक छोटी सी घटना अपने आप बहुत कुछ बदलकर चली जाती है लेकिन कुछ चीज़ें इतनी कठोर होती है कि उसे बदल पाना असंभव सा लगता है।
अगर यही सोच मिट्टी से घरा बनाते कुम्हार के भीतर आ जाये तो वह मिट्टी कभी घरा बन ही नहीं सकती है, कुम्हार उस मिट्टी को इतना अधिक मुलायम कर देता है कि जिस सांचे में चाहे ढाल दे, उसे जो चाहे वह आकर दे और यह सब परिवर्तन के कारण ही तो संभव हो पता है।
उपसंहार
जब किसी परिस्थिति को बदला नहीं जा सकता है तो हमें अपने आप को बदलना चाहिए ताकि उस परिस्थिति का सामना हम और भी बेहतर ढंग से कर सके।
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा था कि जो बदलाव हम दुनिया में लाना चाहते है उसे सबसे पहले हमें अपने आप में लेकर आना होगा, इतिहास में जितने भी महान व्यक्ति हुए है सभी ने बदलते समय के साथ अपनी सोच को बदला और समाज में एक नयी चेतना और बदलाव लेकर आए।
जिस आज में हम जी रहे है वह कब अतिति बन जाता है पता भी नहीं चलता ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वह लकीर का फकीर न बन कर वर्तमान में जिए क्योंकि प्रत्येक क्षण बदलता हुआ आगे बढ़ जाता है।