बदलते वर्तमान समाज एवं शिक्षार्थी की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक शिक्षक होने के नाते आप अपने आप में किस प्रकार का बदलाव चाहते हैं दो उदाहरण लिखो
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इस दृष्टि से एक आदर्श शिक्षक जीवन पर्यन्त विद्यार्थी की भूमिका में बना रहता है और हर क्षण कुछ नया सीखनें की ललक उसमें समान रूप से देखनें को मिलती है, जबकि इसके विपरीत कुछ शिक्षक सेवारत होनें के पश्चात् सतत अध्ययन से मुँह मोड़ लेते हैं एवं उनके अन्दर सर्वज्ञता तथा अफसरत्व का भाव जागृत हो जाता है |
परिणाम स्वरुप शिक्षा एवं शिक्षण के क्षेत्र में नवाचार, नई – नई रणनीतियाँ, तकनीकियाँ एवं आव्यूह रचनाये इत्यादि क्यों न आ जाये लेकिन ये महाशय अपनी हरकतों से बाज कहाँ आनें वाले हैं ? कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसे लोग लगातार कई दशकों से एक ही ढर्रे पर शिक्षण कार्य करते रहते हैं, और अपने विद्यार्थी जीवन में सीखी हुई शिक्षण विधियों का अनुप्रयोग वे सेवामुक्त होनें तक करते रहते हैं |
एक शिक्षक होने के नाते वर्तमान युग में ये बदलाव महत्वपूर्ण है :-
1.अभिभावक और शिक्षकों की मीटिंग हर 15 दिन पर होनी चाहिए क्योंकि अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चों में कहीं से कोई कमी नहीं होनी चाहिए I शिक्षक उन्हें अपना ज्ञान इस प्रकार पिला दे की बच्चे के अन्दर खेलने टीवी देखने फेसबुक ,मोबाइल चलने का प्रयाप्त समय हो I और शिक्षक चाहते हैं की बच्चों में इतना अनुशासन अवश्य हो कि घर और बाहर कहीं से उनकी कोई शिकायत न आये और घर में अनुशासन होगा तो बाहर भी अनुशासन होगा I
2.शिक्षकों की इच्छा यह होती है कि हमारे बच्चे हमसे अधिक जानकार हों I प्रतियोगिता परीक्षाओं में आगे आ सकें और हर कुछ हासिल कर सकें I लेकिन शिक्षक के हाथ तो कटे हुए हैं वे बच्चों को दंड नहं दे सकते जबकि दंड देना भी शिक्षा का एक अंग ही है I परिवेश बदल गया है अब छात्रों से शिक्षक डरने लगे हैं I थोड़ी सी अगर कड़ाई की जाए तो बच्चे बिगड़ेंगे नहीं "भय बिन होत न प्रीत "