बड़े भाई साहब की रचनाओं को समझना लेखक के लिए कैसा था
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उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी। मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। ... न जाने मुँह से यह बात क्यों न निकलती कि जरा बाहर खेल रहा था। मेरा मौन कह देता था कि मुझे अपना अपराध स्वीकार है और भाई साहब के लिए इसके सिवा और कोई इलाज न था कि स्नेह और रोष से मिले हुए शब्दों में मेरा सत्कार करें।
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