Hindi, asked by sakura13, 1 year ago

बढ़ते तापमान और जानलेवा गर्मी


shagufta028: Do u want Paragraph on the topic given above
sakura13: yeah
shagufta028: Ok
shagufta028: Is it ok
sakura13: Ya
sakura13: thnx

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Answered by shagufta028
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पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है और यही ऊर्जा इसकी सतह को गर्माती है। इस ऊर्जा का लगभग एक तिहाई भाग पृथ्वी को घेरने वाले गैसों के आवरण, जिसे वायुमंडल कहा जाता है, से गुजरते वक्त तितर-बितर हो जाता है। इस प्राप्त ऊर्जा का कुछ हिस्सा धरती और समुद्र की सतह से टकराकर वायुमंडल में परावर्तित हो जाता है।

वैश्विक तापवृद्धि, जैसा कि नाम से ही विदित होता है, पृथ्वी की सतह से समीप की हवा और महासागरों के औसत तापमान में वृद्धि को कहा जाता है। अब इस सच्चाई में कोई संदेह नहीं है कि पृथ्वी पर हाल के वर्षों में बढ़ी तपिश के लिए मानवीय गतिविधियों के चलते कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जिम्मेदार है। इन गतिविधियों में औद्योगिक प्रक्रियाएं, जीवाश्म ईंधन का दहन और वनोन्मूलन जैसे ज़मीन के प्रयोग में बदलाव सम्मिलित है। पृथ्वी की जलवायु पर प्रभाव डालने के अतिरिक्त वैश्विक तापवृद्धि, मानव स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। यह कार्य प्रत्यक्ष रूप से बढ़ते तापमान द्वारा रोग की स्थितियों पर प्रभाव डालकर किया जा सकता है अथवा परोक्ष रूप से खाद्य उत्पादन, जल वितरण या अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर वैश्विक तापवृद्धि मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल सकती है। बढ़ती तपिश पहले से ही गरीबों और इस समस्या से जूझ रहे राष्ट्रों पर अत्यंत घातक प्रभाव डालेगी। यह एक ऐसा मुद्दा है कि हम सभी को, खासतौर पर चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े वर्ग को इसे अत्यंत गंभीरता से लेना होगा।


बढ़ते तापमान का अध्ययन और आज की स्थिति


पृथ्वी की जलवायु में हो रहे बदलावों के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक विभिन्न विधियों का प्रयोग करते हैं। उपग्रहीय अध्ययनों से वक्त या इन्फ्रारेड विकिरण उत्सर्जन की सहायता से गर्माहट की प्रवृत्ति के फोटोग्राफिक साक्ष्य प्राप्त होते हैं। परंतु इस प्रकार के अध्ययन अपेक्षाकृत नए हैं और इससे तुलनात्मक अध्ययन हेतु पूर्व के बहुत अधिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि 19वीं सदी से सतह पर तापमान मापन आधारित रिकॉर्ड उपलब्ध हैं और इनके माध्यम से तापमान की वर्तमान प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।


गुज़रे वक्त की जलवायु संबंधी अभिलेख या पुरा जलवायु आंकड़े, जो वृक्ष वलयों, प्रवालों, जीवाश्मों, तलछट अभ्यंतरों, परागों, हिम अभ्यंतरों और गुफाओं के आरोही निक्षेपों के अध्ययन से प्राप्त किए गए हैं, बढ़ते तापमान की वर्तमान प्रवृत्तियों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि करते हैं। इन अभिलेखों की मदद से हम गुज़री कई सदियों के दौरान वैश्विक तापमान के उतार-चढ़ाव का अध्ययन कर सकते हैं। इन अभिलेखों के कारण ही वैज्ञानिक सहस्राब्दि से पुराने आंकड़ों का परीक्षण कर पाने में सफल हुए हैं। इस प्रकार के अभिलेख ही हमें अत्यंत पुराने समय के लिए परिकल्पित गर्म कालों तक देख पाने की दृष्टि प्रदान करते हैं।


वर्तमान और भविष्य का नज़ारा


वैश्विक जलवायु मॉडल दरअसल सॉफ्टवेयर पैकेज हैं जो हमारे वायुमंडल के भूत, वर्तमान और भविष्य का अनुरूपण दर्शाते हैं। ये जलवायु मॉडल उत्कृष्ट साधन है और इनके भीतर जलवायु तंत्र में पाई जाने वाली भौतिक क्रियाओं की वर्तमान स्थिति की समझ, पारस्परिक क्रियाएं और संपूर्ण तंत्र की जानकारी समाहित रहती है। जलवायु मॉडल वायुमंडल, महासागरों, पृथ्वी की सतह और बर्फ की पारस्परिक क्रियाओं के अनुरूपण के लिए मात्रात्मक विधियों का प्रयोग करते हैं। इनका इस्तेमाल मौसम और जलवायु तंत्र की गतिकी के अध्ययन से लेकर भविष्य की जलवायु को प्रस्तुत करने तक के लिए किया जाता है।


जलवायु मॉडल अपेक्षाकृत सरल से लेकर अत्यंत जटिल प्रकार के हो सकते है। हालांकि ये मॉडल पूर्णता से अभी दूर हैं परंतु वैज्ञानिकों का विश्वास है कि ये ग्रहीय जलवायु को संचालित करने वाली प्रमुख क्रियाओं को पकड़ लेते हैं। जैसे-जैसे जलवायु तंत्र के विभिन्न घटकों और उनकी पारस्परिक क्रियाओं के ज्ञान में वृद्धि होती है, जलवायु मॉडलों की जटिलता भी बढ़ती जाती है। सभी जलवायु मॉडलों में पृथ्वी पर आने वाली ऊर्जा और यहां से जाने वाली ऊर्जा का एक संतुलन होता है। किसी भी प्रकार का असंतुलन पृथ्वी के औसत तापमान में बदलाव का द्योतक होता है। वैश्विक जलवायु मॉडल तैयार करने में भविष्य की जनसंख्या वृद्धि और ऊर्जा के संभावित प्रयोग को गणना में लिया जाता है। इसके पश्चात इन जलवायु मॉडलों का अध्ययन आने वाले समय की जलवायु की भविष्यवाणी के लिए किया जाता है।


इस प्रकार के सभी अध्ययन इस दिशा की ओर इंगित करते हैं कि वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन स्तर में कमी नहीं आ रही है। इसलिए यह अत्यावश्यक हो जाता है कि जलवायु में बदलाव संबंधी मॉडलों का अध्ययन भविष्य की जलवायु में हो सकने वाले परिवर्तनों के आधार पर किया जाए। विभिन्न मॉडलों से प्राप्त परिणामों के आधार पर वैज्ञानिकों ने आने वाले सदी के लिए निम्नांकित भविष्यवाणियां की हैं:


1. जलवायु की चरम स्थिति की आवृत्ति या बारम्बारता में परिवर्तन संभावित है जिससे बाढ़ एवं सूखे का खतरा बढ़ जाएगा। सर्द काल में कमी आएगी और ग्रीष्म काल बढ़ेगा।

2. ‘अल नीनो’ की बारम्बारता और इसकी तीव्रता प्रभावित हो सकती है।

3. वर्ष 2100 तक विश्व के औसत समुद्र स्तर में 9.88 सेंटीमीटर की वृद्धि संभावित है।


बढ़ते तापमान के इतिहास की खोज



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