Hindi, asked by watercan3186, 1 year ago

bujurgo ki parivarik samasya

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Answered by palakmishra89
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हमारा समाज आज से पहले पेड़ों, पत्थरों से लेकर जानवरों तक को पूजता था, आज अपने बुजुर्गों को दरकिनार कर रहा है. माता-पिता को देवता माननेवाले बेटे अब उन्हें ही बोझ समझने लगे हैं. बुजुर्गो पर होनेवाले अत्याचार के मामले बढ़ रहे हैं. एक वक्त था, जब माता-पिता को आदर्श मान उनका सम्मान किया जाता था. पूरे संसार में शायद भारत ही एक ऐसा देश है, जहां तीन पीढ़ियां सप्रेम एक ही घर में रहती थीं. आज पाश्चात्य सभ्यता के वशीभूत देश के नौजवान माता-पिता के साथ चंद सेकेंड बिताना भी मुनासिब नहीं समझते.  इस तरह की सोच देश में मध्यम और निम्न परिवार में कम और पढ़े-लिखे, ज्ञानवान, धनवान और सभ्य समाज में ज्यादा देखने को मिल रही है. देश के ओल्ड एज होम्स में रिटायरमेंट के बाद का जीवन बितानेवालों की संख्या अधिक है. कुछ बुजुर्ग तो ऐसे हैं, जिन्हें घर में ही कैद कर दिया गया है. इन बुजुर्गो के संरक्षण के लिए देश में कानून भी बने हैं.  जानकारी के अभाव और बदनामी के डर से बुजुर्ग कानून का सहारा लेने से हिचकते हैं. कई मामलों में बुजुर्ग अपने बच्चों को इस कदर प्यार करते हैं कि उनकी प्रताड़ना भी खामोशी से सह लेते हैं. जो माता-पिता अपनी औलाद के आगमन की खुशी में मोहल्ले में मिठाइयां बांटते फिरते थे और उसकी एक हंसी से दुनिया की पूरी खुशियां प्राप्त कर लेने की अनुभूति करते थे, वही औलाद माता-पिता की एक छोटी-सी इच्छा की पूर्ति करने में आनाकानी कर रही है. उन्हें अपने जीवन का बोझ समझती है.  माता-पिता के प्रति नफरत बढ़ती ही जा रही है. भले ही देश के युवाओं की सोच बदल गयी हो, लेकिन माता-पिता अब भी नहीं बदले हैं. हमें समाज में सुधार लाने के प्रयास करने ही होंगे. हरिश्चंद्र महतो, बेलपोस , प सिंहभूम
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