Bus ki atmakatha in hindi
Answers
Answered by
9
Hello friend
__________________________________________________________
मैं एक बस हूँ। मैं इस्पात और अन्य धातु से मिलकर बनती हूँ। मैं रोज़ ही कई यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुँचाती हूँ। मेरा निर्माण एक बड़ी वाहन निर्माता द्वारा किया गया था। मुझे दिल्ली परिवहन निगम के लिए बनाया गया। मुझे शीघ्र ही कालकाजी बस डिपो में यात्रियों की सेवार्थ नियुक्त कर दिया गया था। मुझे ५११ नबंर दिया गया। मैं नित्य ही कई यात्रियों को धौला कुँआ से लेकर बदरपुर बोर्डर तक ले जाती थी। जब तक मैं नई थी। मेरी रफ़्तार आश्चर्यजनक थी। बस चालक मुझे चलाने में गौरव का अनुभव करते थे। यात्री भी सदैव मुझ पर बैठकर प्रसन्न होती थे। मैं भी बड़े गर्व से सड़क पर चलती थी और हवा से बातें किया करती थी। लोग प्रायः कहते थे कि मैं सदैव सही समय पर उन्हें कार्यालय पर पहुँचा देती हूँ। मैं भी इस बात से बहुत प्रसन्न थी। परन्तु मार्ग मैं चलने वाले कुछ मनचलों के कारण मेरे साथ बड़ी भंयकर दुर्घटना घटी। उसमें मैंने किसी यात्री को हताहत तो नहीं होने दिया। परन्तु मेरे शरीर पर बहुत गहरे निशान पड़ गए। इस कारण मेरी गति और सुंदरता पर भी प्रभाव पड़ा। डिपो के प्रधान संचालक ने मेरी मरम्मत तो करवाई परन्तु मैं पहले जैसी स्थिति में नहीं आ पाई। अब मेरी रफ़्तार पहले से कम हो गई। कई बार तो मैं चलते-चलते रुक जाती थी। इस कारण लोगों को असुविधा होती थी। पहले जो मेरी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते थे। अब वह मुझ पर बैठने से कतराने लगे। परन्तु फिर भी मैं मार्ग में चलती रही। अपने कर्तव्य से मैंने कभी मुँह नहीं मोड़ा। लगातार अपनी सेवाएँ देती रही। पाँच साल होते होते मेरा शरीर क्षीण पड़ने लगा। सब मुझे बनाने वाली कंपनी को भला-बुरा कहने लगे। उन्हें लगा कि उन्होंने धोखा किया है। परन्तु किसी को यह याद नहीं रहा कि मैं एक भयंकर दुर्घटना का शिकार हुई हूँ। आखिर मेरी बार खराब होती स्थिति को देखकर डिपो वालों ने मेरी दोबारा मरम्मत करवाई और मुझे विद्यालय की सेवार्थ नियुक्त कर दिया। यहाँ पर मुझे अधिक कार्य नहीं करना पड़ता था। समीप के स्कूल से मुझे बच्चों को उनके घरों तक पहुँचाना होता था। यह काम मुझे बहुत पसंद आया और मेरी दशा थोड़ी ठीक होने लगी। अब मैं इसी काम को करके बहुत खुश हूँ। __________________________________________________________
Hope it helps u
__________________________________________________________
मैं एक बस हूँ। मैं इस्पात और अन्य धातु से मिलकर बनती हूँ। मैं रोज़ ही कई यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुँचाती हूँ। मेरा निर्माण एक बड़ी वाहन निर्माता द्वारा किया गया था। मुझे दिल्ली परिवहन निगम के लिए बनाया गया। मुझे शीघ्र ही कालकाजी बस डिपो में यात्रियों की सेवार्थ नियुक्त कर दिया गया था। मुझे ५११ नबंर दिया गया। मैं नित्य ही कई यात्रियों को धौला कुँआ से लेकर बदरपुर बोर्डर तक ले जाती थी। जब तक मैं नई थी। मेरी रफ़्तार आश्चर्यजनक थी। बस चालक मुझे चलाने में गौरव का अनुभव करते थे। यात्री भी सदैव मुझ पर बैठकर प्रसन्न होती थे। मैं भी बड़े गर्व से सड़क पर चलती थी और हवा से बातें किया करती थी। लोग प्रायः कहते थे कि मैं सदैव सही समय पर उन्हें कार्यालय पर पहुँचा देती हूँ। मैं भी इस बात से बहुत प्रसन्न थी। परन्तु मार्ग मैं चलने वाले कुछ मनचलों के कारण मेरे साथ बड़ी भंयकर दुर्घटना घटी। उसमें मैंने किसी यात्री को हताहत तो नहीं होने दिया। परन्तु मेरे शरीर पर बहुत गहरे निशान पड़ गए। इस कारण मेरी गति और सुंदरता पर भी प्रभाव पड़ा। डिपो के प्रधान संचालक ने मेरी मरम्मत तो करवाई परन्तु मैं पहले जैसी स्थिति में नहीं आ पाई। अब मेरी रफ़्तार पहले से कम हो गई। कई बार तो मैं चलते-चलते रुक जाती थी। इस कारण लोगों को असुविधा होती थी। पहले जो मेरी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते थे। अब वह मुझ पर बैठने से कतराने लगे। परन्तु फिर भी मैं मार्ग में चलती रही। अपने कर्तव्य से मैंने कभी मुँह नहीं मोड़ा। लगातार अपनी सेवाएँ देती रही। पाँच साल होते होते मेरा शरीर क्षीण पड़ने लगा। सब मुझे बनाने वाली कंपनी को भला-बुरा कहने लगे। उन्हें लगा कि उन्होंने धोखा किया है। परन्तु किसी को यह याद नहीं रहा कि मैं एक भयंकर दुर्घटना का शिकार हुई हूँ। आखिर मेरी बार खराब होती स्थिति को देखकर डिपो वालों ने मेरी दोबारा मरम्मत करवाई और मुझे विद्यालय की सेवार्थ नियुक्त कर दिया। यहाँ पर मुझे अधिक कार्य नहीं करना पड़ता था। समीप के स्कूल से मुझे बच्चों को उनके घरों तक पहुँचाना होता था। यह काम मुझे बहुत पसंद आया और मेरी दशा थोड़ी ठीक होने लगी। अब मैं इसी काम को करके बहुत खुश हूँ। __________________________________________________________
Hope it helps u
Similar questions