(च) अपनी सोच के अनुसार ईश्वर के कतिपय गुणों का वर्णन करो।
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हालांकि ईश्वर तो गुणातीत और गुणरहित है फिर भी लिखने में ऐसा ही आता है कि ईश्वर है तो उसके क्या गुण है? यहां प्रस्तुत है इसके बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1.वह सिर्फ एक ही है बगैर किसी दूसरे के। वह अनुपम है।
2.उसका न कोई मां-बाप है और न पुत्र।
3.उसके कोई अभिकर्ता (एजेंट, संदेशवाहक, अवतार, देवदूत या प्रॉफेट) नहीं है।
4.वह अजन्मा और अप्रकट है।
5.वह निराकार और निर्विकार है।
6.उसकी कोई मूर्ति नहीं बनाई जा सकती।
7.वह अनादि और अनंत है। अर्थात उसका न प्रारंभ है और न अंत।
8.वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता।
9.वह अपरिवर्तनीय और अगतिशिल है।
10.उसका देश अथवा काल की अपेक्षा से कोई आदि अथवा अंत नहीं है।
11.उसका कभी क्षय नहीं होता, वह सदैव परिपूर्ण है।
12.उसका अस्तित्व है।
13.वह चेतन है।
14.वह सर्वशक्तिमान है।
15.वह सर्वज्ञ और सर्वव्यापक है।
16.वह शुद्धस्वरूप है।
17.वह न्यायकारी है।
18.वह दयालु है।
19.वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है।
20.वह सब से रहित है।
21.वह संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है।
22.वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है।
23.उसको किसी का भय नहीं है।
24.उसका सभी जीवों के साथ सीधा सम्बन्ध है।
25.सभी की आत्मा उसका बींब मात्र है।
26.सभी उसमें से उत्पन्न होकर उसी में लीन हो जाते हैं।
27.वह दूर से दूर और पास से भी पास है।
28.वह न पुरुष है और न स्त्री।
29.वह काल पुरुष परम ज्योति है।
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Answer:
ईश्वर निराकार है, इसका अर्थ है कि उसका कोई आकार व आकृति नहीं है। निराकार का एक कारण उसका सर्वव्यापक व अनन्त होना भी है। ईश्वर इस समस्त चराचर जगत व ब्रह्माण्ड में सर्वान्तर्यामी स्वरूप से व्यापक है। उसकी लम्बाई व चैड़ाई अनन्त होने व उसके मनुष्य के समान आंख, नाक, कान, मुख व शरीर न होने के कारण वह अस्तित्ववान् होकर भी आकर से रहित अर्थात् निराकार है। ईश्वर का एक गुण सर्वज्ञ होना भी है। सर्वज्ञ का अर्थ है कि वह अपने, जीवात्मा और सृष्टि के विषय में भूत व वर्तमान का सब कुछ जानता है और उसे भविष्य में कब क्या करना है वह भी जानता है। वैदिक सिद्धान्त है कि ईश्वर त्रिकालदर्शी है जिसका अर्थ है कि ईश्वर जीवों के कर्म आदि व्यवहारों की अपेक्षा से भूत, भविष्य व वर्तमान आदि को जानता है। ईश्वर में ऐसे असंख्य व अनन्त गुण हैं जिसे वेदाध्ययन व सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर जाना जा सकता है