चोल कला और चोल समाज के बारे में व्याख्या करें।
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चोल कला और चोल समाज के बारे में व्याख्या —
कला — चोल वंश के राजाओं ने पल्लवों की स्थापत्य कला को आगे बढ़ाया था। चोलों ने द्रविड़ शैली के मंदिर बनवाए। इनकी विशेषताएं उनका वर्गाकार विमान, मंडप, गोपुरम. कलापूर्ण स्तंभ आदि थे। राजराज प्रथम का तंजौर का शिव मंदिर द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है।
दक्षिण भारत में नहरों की प्रणाली चोलों की ही देन थी। चोलों द्वारा बनवाए गए मंदिरों में चिदंबरम और तंजौर के मंदिर सबसे उत्तम मंदिर हैं। चोली युग में बनाई गई नटराज शिव की कांसे की मूर्तियां सर्वोत्तम मानी जाती है। मंदिरों की गोपुरम शैली का विकास चोल युग में ही हुआ था।
समाज — चोल राजा शैव धर्म के अनुयायी थे। वह अश्वमेध यज्ञ भी करते थे। उनके समाज में स्त्रियां संपत्ति की स्वामिनी होती थीं। चोल राज्य में दास और और देवीदासी जैसी प्रथाओं का भी प्रचलन था।
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