*चोल साम्राज्य के दौरान राजस्व एकत्र करने के लिए पदाधिकारियों की भर्ती की गई जाती थी:* 1️⃣ किसानों से 2️⃣ कारीगरों से 3️⃣ व्यापारियों से 4️⃣ प्रभावशाली परिवारों से
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उत्तर:
चोल साम्राज्य के दौरान राजस्व एकत्र करने के लिए प्रभावशाली परिवारों से पदाधिकारियों की भर्ती की गई जाती थी:
व्याख्या:
राज्य की आय का मुख्य साधन भूराजस्व था। भूराजस्व निर्धारित करने से पूर्व भूमि का सर्वेक्षण , वर्गीकरण एवं नाप - जोख कराई जाती थी। तत्कालीन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि , राजराज प्रथम एवं कुलोत्तुंग के पैर की माप ही भूमि की लम्बाई मापने की इकाई बनी। भूमिकर भूमि की उर्वरता एवं वार्षिक फसल चक्र देखने के बाद निर्धारित किया जाता था। सम्भवतः चोल काल में भूमि कर उपज का एक तिहाई हुआ करता था , जिसे अन्न व नकद दोनों रूपों में लिया जाता था। चोल अभिलेखों में भूमि कर के अतिरिक्त अन्य करों का उल्लेख मिलता है। राजस्व विभाग का उच्च अधिकारी ‘ वरित्पोत्तगकक् ’ कहा जाता था। इन करों के अतिरिक्त् चोल राजा निकटवर्ती क्षेत्रों की लूट मार से भी अपनी आय बढ़ाते थे। विवाह समारोह पर भी कर लगता था। अभिलेखों में करो व वसूलियों के लिए ‘ हरै ’ या ‘ वरि ’ , ‘ मरुन्पाडु ’ और ‘ द्रंडम् ’ शब्द का प्रयोग किया गया है। अन्न का मान एक कलम ( तीन मन ) था। बेलि भूमि माप की इकाई थी। सोने के सिक्के को काशु कहा जाता था।
चोल अभिलेखों में भूमि कर के अतिरिक्त अनेक प्रकार के कर लगाए जाते थे , जैसे - मरमज्जाडि ( उपयोगी वृक्षकर ) , कडमै ( सुपाड़ी के बागान पर कर ) , मनैइरै ( गृहकर ) , कढ़ैइरै ( व्यापारिक प्रतिष्ठान कर ) , पेविर ( तेलघानी कर ) , पाडिकावल ( ग्राम सुरक्षा कर ) , मगन्यै ( स्वर्णकार , लौहकार , कुम्भकार , बढ़ई आदि के पेशों पर लगाया जाने वाला कर ) ।
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