चीन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, इसी भाव को ग्रहण कर
कवि कहते हैं कि आज हम विकसित देशों की परम्परा में अग्रगण्य होकर
कविन प्रस्तुत पाठ में भारतभूमि की प्रशंसा करते हुए कहा है कि आज भी यह
भूमि विश्व में स्वर्णभूमि बनकर ही सुशोभित हो रही है।
मिसाइलों का निर्माण कर रहे हैं, परमाणु शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं। इसी के साथ
ही साथ हम ‘उत्सवप्रियाः खलु मानवाः' नामक उक्ति को चरितार्थ भी कर रहे हैं
कि 'अनेकता में एकता है हिंद की विशेषता' इसी आधार पर कवि के उद्गार हैं
कि बहुत मतावलम्बियों के भारत में होने पर भी यहाँ ज्ञानियों, वैज्ञानिकों और विद्वानों
की कोई कमी नहीं है। इस धरा ने सम्पूर्ण विश्व को शिल्पकार, इंजीनियर, चिकित्सक,
प्रबंधक, अभिनेता, अभिनेत्री और कवि प्रदान किए हैं। इसकी प्राकृतिक सुषमा अद्भुत
है। इस तरह इन पद्यों में कवि ने भारत के सर्वाधिक महत्त्व को उजागर करने का
प्रयास किया है।
पाठ में पर्वो और उत्सवों की चर्चा की गई है ये समानार्थक होते हुए भी भिन्न
है। पर्व एक निश्चित तिथि पर ही मनाए जाते हैं, जैसे-होली, दीपावली, स्वतंत्रता
दिवस, गणतंत्र दिवस इत्यादि। परन्तु उत्सव व्यक्ति विशेष के उद्गार एवं आहाद के
द्योतक हैं। किसी के घर संतानोत्पत्ति उत्सव का रूप ग्रहण कर लेती है तो किसी
को सेवाकार्य में प्रोन्नति प्राप्त कर लेना, यहाँ तक कि बिछुड़े हुए बंधु-बांधवों से
अचानक मिलना भी किसी उत्सव से कम नहीं होता है।
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