चिन्तन के तीन स्तरों को समझाइये
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चिंतन के तीन स्तर इस प्रकार है...
- धार्मिक स्तर ► चिंतन के इस प्रथम स्तर में मनुष्य की बुद्धि का विकास बहुत ही कम होता है। इस स्तर पर मनुष्य किसी भी प्राकृतिक आपदा रूपी घटना को दैवीय प्रकोप मानता है या वह किसी भी विपत्ति को दैवीय प्रकोप मानता है। इस स्तर पर मनुष्य रूढ़िवादी होता है और उसमें तर्कशक्ति का अभाव होता है। इस स्तर तीन अवस्थाएं होती हैं, जिसमें प्रथम अवस्था में वह रूढ़िवादिता और अंधविश्वास से जुड़ा होता है। बीच की थोड़ी विकसित अवस्था में मनुष्य का मस्तिष्क विकसित होने लगता है और वह धार्मिक शक्तियों से चिंतित और भयभीत भी होने लगता ,है तीसरी अंतिम और विकास की पूर्ण अवस्था में मनुष्य एक ईश्वरवादी हो कर ईश्वर को ही सर्वे-सर्वा मानने लगता है।
- तात्विक स्तर ► चिंतन की दूसरी अवस्था में मनुष्य धार्मिक अवस्था का त्याग कर यथार्थता की ओर बढ़ने लगता है। यह प्रथम धार्मिक अवस्था से कुछ संशोधित अवस्था होती है और इसमें मनुष्य के मस्तिष्क का विकास होने लगता है और उसमें तर्कशक्ति भी जागने लगती है। उसका मन तार्किक हो जाता है और उसके मन में जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है, जिसके समाधान के लिए वह वैज्ञानिक उपायों को आजमाने लगता है।
- प्रत्यक्षात्मक स्तर ► चिंतन के तीसरे और अंतिम स्तर में मनुष्य पूर्ण विकसित अवस्था को प्राप्त कर लेता है। इस स्तर मनुष्य अपने मस्तिष्क का पूर्ण विकास कर चुका होता है, उसमें तर्कशक्ति का पूर्ण उदय हो चुका होता है। वो तथ्यात्मक बातों को ही स्वीकारता है और उसे प्रत्यक्ष प्रमाण चाहिए होता है। वो हर बात को तर्क एवं वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसने लगता है। यहीं से मनुष्य के विकास की यात्रा आरंभ होती है।
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