चुनाव के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके क्या हैं?
Answers
Answer:
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली
Explanation:
राजस्थान में जनवरी एवं फ़रवरी माह में आयोजित पंचायतीराज के प्रथम चरण के चुनावों के समय इसका पहला लेख प्रकाशित किया गया था । इसी विषय पर चर्चा को जारी रखते हुए “प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति” के संवैधानिक प्रावधानों एवं भारत के अलग-अलग राज्यों में ग्राम पंचायतों निर्वाचन प्रक्रियाओं को समझने का प्रयास करते है।
73वें संवैधानिक संशोधन के आर्टिकल 243 C के अनुसार किसी ग्राम पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन ऐसी रीति से, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंधित की जाए, किया जायेगा; और मध्यवर्ती स्तर या जिला स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन, उसके निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाएगा।
इन्ही संवैधानिक प्रावधानों की वजह से भारतवर्ष के अलग-अलग राज्यों में ग्राम पंचायत के स्तर पर अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया अलग-अलग है । केरल, कर्नाटक, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल एवं पंजाब में ग्राम पंचायत के स्तर पर अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से किया जाता है । इसमें से केरल, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल में राजनैतिक पार्टियों के चिन्ह पर चुनाव लड़ा जाता है । कर्नाटक एवं पंजाब में ऐसा नहीं होता है । भारत के शेष राज्यों में ग्राम पंचायत के स्तर पर अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
राजस्थान में ग्राम पंचायत के स्तर पर अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से नागरिकों द्वारा किया जाता है, जबकि उपसरपंच का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम पंचायत के चुने हुए सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाता है ! समय-समय पर राजनैतिक दलों के बीच यह चर्चा का विषय रहता है की “अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से कराया जाए या अप्रत्यक्ष रूप से?” जानकार विश्लेषकों का इस विषय में अलग-अलग मत है, जैसा की हमने विगत लेख में भी उल्लेख किया था की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया के गुण तथा दोष को समझने का प्रयास करते है । प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के बारे में लोगों का मानना है की इससे नागरिकों एवं जन-प्रतिनिधियों के बीच सीधा-संवाद बनता है जिससे समस्याओं का समाधान बेहतर हो पाता । इसके विरुद्ध में जानकार विशेषज्ञ तर्क देते है सत्ता की सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास केन्द्रित हो जाती है, जिससे मनमानी एवं तानाशाही का डर रहता है । कुछ जानकार अलग शब्दों में यह भी कहते है की यह पंचायतीराज ना होके सरपंचशाही हो जाती है । उनके चुने हुए वार्ड-पंचों का कोई महत्व नहीं रह जाता है क्योंकि उनके हाथों में कोई शक्ति नहीं रह जाती है।
इसके विपरीत अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली में जानकार तर्क देते है की लोकतान्त्रिक मूल्यों की हिसाब से सत्ता की शक्तियां एक व्यक्ति के पास केन्द्रित नहीं होती है । सत्ता ज्यादा पारदर्शी एवं जवाबदेही रहती है । इसके विरोध में जानकार तर्क देते है की इस प्रणाली में खरीद-फरोख्त की राजनीती ज्यादा होती है।
मेरे मत में लोकतान्त्रिक मूल्यों के लिहाज से मैं अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली का समर्थन करता हूँ । ज्यादातर राज्य सरकारों का मत है की ग्राम पंचायत के स्तर पर राजनैतिक पार्टियों के चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं होने चाहिए, क्योंकि स्थानीय स्तर पर इतनी राजनीति अच्छी नहीं है । व्यक्तिगत रूप से में इस बात का समर्थन नहीं करता हूँ । मेरे हिसाब से अगर राजनैतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर ग्राम पंचायतों के अध्यक्ष का चुनाव होता है तो हमें बहुत अच्छे राजनेता मिलेगे । वंशवाद की राजनीति कम होने लगेगी ! खरीद-फरोख्त की राजनीति को कम करने के लिए “दल-बदल विरोधी कानून” (Anti-Defection Law) को लागु किया जाना चाहिए ।