Hindi, asked by kmalik5320, 11 months ago

चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन। Chunav ka Drishya par Nibandh

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Answered by TheEmma
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Explanation:

आम चुनाव होने वाले थे। तारीख निश्चित हो चुकी थी। प्रत्येक पार्टी अपने अपने उम्मीदवार की विजय के लिए निरंतर प्रयत्नशील थे। झूठे सच्चे प्रलोभन दिखाकर जनता को भ्रमित किया जा रहा था। कोई कहता था कि मैं ऊपर जाकर किसानों के कर हटवा दूंगा, कोई कहता था कि मैं बिक्री कर कम कराऊँगा, कोई कहता था कि मैं भारतवर्ष की गरीबी को दूर कर गरीबों और अमीरों दोनों को एक आसन पर बैठाने का प्रयत्न करूंगा, कोई कहता था कि मैं भारत को इसका पुराना स्वर्णिम काल, इसका पुराना वैभव, इसकी पुरातन शक्ति और संगठन पुनः प्राप्त कराने का प्रयत्न करूंगा। कोई कोई अपने पुराने त्याग और बलिदान की कहानी सुनाकर पुराने तपे हुए नेताओं के नाम की दुहाई देकर ही वोट मांगता था। अजीब दृश्य था। जनता को नित्य नये नये प्रलोभन दिये जा रहे थे। जनता हैरान थी कि किसकी बात मानी जाये और किसकी न मानी जाये। जो बहुत पुराने आदमी थे, वे गांधी बाबा का गुण गाते थे। जो नये थे और जिन्होंने केवल शहर देखाभर था, ज्यादा पढ़ लिखे नहीं थे, वे केवल पंचायती पुस्तकालयों में कभी कभी अखबार की मोटी सुर्खियों पर नजर डाल लिया करते थे वे बिना पढ़ लिखे पर तर्क वितर्क से अपना रोब गाँठते थे, और अपने पक्ष में वोट डालने की जब तक हां न करा लेते तब तक उन बेचारे निरक्षरों का पीछा न छोड़ते।  

गांव बड़ा था और शहर के पास ही था इसलिए शहर में जब कोई नेता जिस पार्टी का आता, बस हमारे गांव में अवश्य आता. भगवे झण्डे, लाल झण्डों और तिरेगें झण्डों की चारों ओर धूम मच रही थी। अपनी अपनी दुकानों और मकानों पर लोगों ने झण्डे लगा रखे थे, जो उनकी अभिरूचि के प्रतीक थे। उन्हें देखकर मतदाता से यह पूछने की आवश्यकता न होती थी कि तुम किसे वोट दोगे? पुरूषों की भांति महिलाओं में भी एक नई जागृति दिखाई पड़ रही थी। भिन्न भिन्न पार्टियों की स्वये सेविकायें घरों में जातीं और अपने पक्ष में वोट डालने के लिए गृहणियों से प्रार्थना करतीं। तरह तरह के झण्डे लेकर बच्चों की टोलियां गलियों में नारे लगाती हुई घूमती थीं। कोई हाथी वाले को वोट डालने को कहता, कोई शेर वाले को, कोई बैलों को, तो कोई बरगद को, कोई फूल को, तो कोई साइकिल को, कोई दीपक को, तो कोई सूरज को।

प्रचार कार्यों से जनता ऊब चुकी थी। माइक की आवाज से उनके कान बहरे हो चुके थे। दूध और दही की नदियों के स्वप्न देखते देखते लोग थक चुके थे। सब चाहते थे कि निर्वाचन का दिन जल्दी से आ जाये। पार्टियों में तोड़ फोड़ अपनी सीमा पार करती जा रही थी। कल जिसके जीतने की आशा थी, आज उसे अपनी पराजय के लक्षण दिखाई पड़ने लगे और जो कल रात तक अपने को हारा हुआ समझे बैठा था, रानीति ने ऐसा पलटा खाया कि आज उसे शत प्रतिशत जीतने की आशा होने ललगी। चौपालों पर, खलिहानों में, दुकानों पर, घरों के चबूतरों पर, मोटरों के अड्डे पर, यहां तक कि पनघटों पर भी वोट की ही चर्चा हो रही थी। जहां भी चार आदमी इकट्टठे खड़े हो जाते वहां यही चर्चा होती कि वह जीता और वह जीता।  

सहसा वह दिन भी आ गया जिस दिन प्रत्येक नागरिक अपने देश से भाग्य विधाता को चुनने के लिए उत्सुक था। चुनाव से एक दिन पहले ही पुलिस का एक छोटा दस्ता गाँव में आ चुका था। चुनाव स्थल की रक्षा तथा जनता में व्यवस्था और अनुशासन का भार पुलिस पर था,क्योंकि पिछले चुनाव में हमारे ही गांव में निर्वाचन स्थल पर खूब लाठी चली थी, लोगों कि सिर फटे थे। हमारे गांव का मालवीय इण्टर कॉलेज ही निर्वाचन स्थल था। एक दिन पहले ही शाम को चुनाव अधिकारी भी गांव में आ गये थे। उनमें शहर के गवर्नमेंट कॉलिज के प्रिंसिपल प्रिजाइडिंग ऑफिसर थे, उनके साथ चार पाँच पोलिंग ऑफिसर थे, जो भिन्न भिन्न विभागों के सरकारी कर्मचारी थे। उनके पास कुछ सामान भी था, उनके साथ वोटिंग मशीन भी थी जिसमें चुनाव चिन्ह के सामने वाला बटन दबाते ही उस चिन्ह वाले प्रत्याशी के पक्ष में मतदान सम्पन्न हो जाता है। प्रिजाइडिंग ऑफिसर ने निर्वाचन स्थल का निरीक्षण किया जहां पहले से ही बूथ बने हुए थे।

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चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन। Chunav ka Drishya par Nibandh

❱ चुनाव मतदान स्थल पर लगी हुई मतदाताओं की लम्बी पंक्ति इस सत्य की प्रतीक थी कि भारत जैसे देश में भी लोकतंत्र के प्रति कितनी आस्था का भाव जीवित है ।

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