Hindi, asked by vnair3882, 1 year ago

चुनावी वायदे पर निबन्ध | Write an Essay on Election Promises in Hindi

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Answered by 1Angel24
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Hey mate here is your answer》》

फिर चली है चर्चा चुनावी वादों की। हर पांच साल में राजनेताओं की जमात देश की जनता से सितारे जमीं पर लाने का वादा करते हैं। कायापलट कर देंगे। देश-प्रांत की तस्वीर बदल देंगे। लेकिन सत्ता मिलते ही चुनावी वादे ताक पर। राजनीतिक पार्टियों का चुनावी घोषणा-पत्र मात्र कागज का टुकड़ा बन जाता है। जनता भी इस सच को जानती है। लेकिन किससे कहें और कहां जाएं वाले हालात हैं। लेकिन इस बार देश के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने इस मुद्दे को उठाया है तो आस बंधती है, कुछ होगा।

खेहर ने दो टूक शब्दों में कहा कि चुनावी वादों को पूरा नहीं करने पर राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाना होगा। लेकिन इसके लिए कानून भी बनाना होगा। उनका स्पष्ट इशारा था कि कानून बनाना संसद का काम है यानी राजनेता ही इस दिशा में आगे आएं। हालात ये हैं कि यदि किसी नेता से चुनावी वादे के बारे में पूछ लिया जाए तो वो बड़ी 'बेशर्मी' से कारणों को गिना भी देते हैं। कभी पर्याप्त संख्या बल का नहीं होना तो कभी कुछ और।

फिर चुनावी घमासान में खुल जाती है वादों की पोटली। जनता भी तो 'अल्प स्मृति' का शिकार है। सीजेआई खेहर का भी कहना है कि जनता भी इसके लिए जिम्मेदार है, नेताओं को चुनावी वादों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार बनाना चाहिए। साथ ही चुनावों के दौरान मुफ्त चीजें देने के वादों पर भी लगाम लगनी चाहिए। धर्म और जाति तो चुनावी मुद्दे बन जाते हैं लेकिन आर्थिक सुधार गौण होते हैं।

चुनावी वादों और सामाजिक-आर्थिक न्याय के संवैधानिक लक्ष्य में कोई तालमेल नजर नहीं आता। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रमुख पार्टियों द्वारा किए गए चुनावी वादे आज भी कही-सुनी बातें ही हैं। हर राजनीतिक पार्टी युवाओं को रोजगार का वादा करती है लेकिन जब क्रियान्वित होने के बारे में उनके नेताओं से पूछते हैं तो जवाब होता है रोजगार के 'अवसर' तो मुहैया करवाए हैं।

बहरहाल, चुनावी वादों को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग और जनता को आगे आना होगा। आयोग कानून लाकर राजनीतिक दलों को चुनाव घोषणा-पत्र में उल्लेखित वादों को पूरा करने के लिए बाध्य करे। साथ ही आमजनता भी अल्प स्मृति दोष से बाहर आए। वादे पूरा नहीं करने वाले राजनेताओं को अगले चुनाव में सबक सिखाए। आखिरकार चुनाव में किए गए वादों की ही बदौलत नेता पांच साल तक सत्ता का सुख भोगते हैं।

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Answered by anjumraees
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Answer:

चुनावी वायदे पर नबन्ध।

Explanation:

चुनाव बुद्धि की लड़ाई है। चुनाव में जो मायने रखता है वह अभियान के पीछे का आदमी है क्योंकि युद्ध में बंदूक के पीछे आदमी क्या मायने रखता है। प्रचारक वादों के साथ लोगों को मंत्रमुग्ध करने की कोशिश करते हैं और इस तरह उन्हें वर्तमान की दबाव वाली वास्तविकताओं के बारे में अज्ञानता की स्थिति में रखते हैं। जैसे 'गेंडाओं के साथ पेड़ों के साथ विश्वासघात किया जाता है, भालू के साथ चश्मा, हाथी के साथ छेद', वैसे ही निर्दोष आम आदमी वादे के साथ।

राजनेता मानव मनोविज्ञान को मनोविज्ञान के छात्रों से बेहतर समझते हैं। वे जानते हैं कि वे हर किसी को खुश नहीं कर सकते हैं, इसलिए उनका उद्देश्य बहुमत को खुश करना है या जो दूसरों के दावों और विचारों की जांच करने में अविवेकी हैं। भारत में आम आदमी का अपने नेताओं में निहित विश्वास इसे राजनेताओं के लिए एक आसान खुशी बनाता है। फिर भी चुनावी वादे लोगों को परेशान करने वाली समस्याओं की प्रकृति के अनुसार बदलते रहते हैं।

लोगों की उम्मीदों, भावनाओं और रुचियों के आलोक में राजनेताओं द्वारा तय किया जाता है कि किस पिच पर कुछ नोट्स बजाए जाने हैं। जनता ने 1977 में परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए जबरदस्ती के तरीकों को छोड़ने का वादा करके चुनावों में जीत हासिल की। श्रीमती गांधी ने 1980 में काम करने वाली सरकार का वादा करके चुनाव जीता। श्रीमती इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा बनाई गई तर्ज पर स्वच्छ सरकार का वादा करके 1985 में राजीव गांधी को अभूतपूर्व जीत मिली।

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