चाणक्य के अनुसार किन तीन उपक्रमों में हमें संतोष नही करना चाहिए ?
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चाणक्य के अनुसार अध्ययन, दान और जाप में संतोष नहीं करना चाहिए। ये तीनों कर्म आप जितना अधिक करेंगे आपके पुण्यों में उतनी ही वृद्धि होगी। जितना ज्यादा अध्ययन करेंगे, उतना ज्यादा ज्ञान बढ़ेगा।
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ये चीजें कितनी भी मिल जाए, इनसे संतुष्ट नहीं होना चाहिए
1. अध्ययन
अध्ययन करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। मनुष्य को चाहे कितना ही ज्ञान क्यों न मिल जाए, वह कभी भी संपूर्ण नहीं होता है। व्यक्ति को हमेशा ही नया ज्ञान पाने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें जितना ज्यादा ज्ञान मिलता है, हमारा चरित्र उतना ही अच्छा बनता है। सही ज्ञान से जीवन की किसी भी परेशानी का हल निकाला जा सकता है। इसीलिए व्यक्ति कितना ही अध्ययन कर ले, उसे कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए।
2. जप
किसी देवी-देवता की पूजा में मंत्रों का जप करने का विशेष महत्व है। मंत्रों और देवी-देवताओं के नामों का जप करने से हमें सभी परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है और जीवन में शांति बनी रहती है। भगवान को याद करने की कोई सीमा नहीं होती। हम कितना भी जप कर ले, वह कम ही होता है। हमें कभी भी जप से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, हमेशा जप करते रहना चाहिए।
3. दान
शास्त्रों में कुछ काम हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य बताए गए हैं, दान भी उन्हीं में से एक है। हर व्यक्ति को दान जरूर करना चाहिए। हम कितना ही दान करें, कभी भी उसका हिसाब-किताब नहीं करना चाहिए। हमें कभी भी दान से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, जहां भी मौका मिले पवित्र भावनाओं के साथ दान करते रहना चाहिए।
कौन थे आचार्य चाणक्य
भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य का महत्वपूर्ण स्थान है। एक समय जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था और विदेशी शासक सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए भारतीय सीमा तक आ पहुंचा था, तब चाणक्य ने अपनी नीतियों से भारत की रक्षा की थी। चाणक्य ने अपने प्रयासों और अपनी नीतियों के बल पर एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया जो आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुए और अखंड भारत का निर्माण किया।
चाणक्य के काल में पाटलीपुत्र (वर्तमान में पटना) बहुत शक्तिशाली राज्य मगध की राजधानी था। उस समय नंदवंश का साम्राज्य था और राजा था धनानंद। कुछ लोग इस राजा का नाम महानंद भी बताते हैं। एक बार महानंद ने भरी सभा में चाणक्य का अपमान किया था और इसी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए आचार्य ने चंद्रगुप्त को युद्धकला में पारंपत किया। चंद्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने मगध पर आक्रमण किया और महानंद को पराजित किया।