चारु चंद्र की चंचल किरणे' इसमें अलंकार है -
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अनुप्रास अलंकार की बानगी है यह कविता 'चारु चंद्र की चंचल किरणें' जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है? (पंचवटी की छांव में पत्तों की सुंदर कुटिया बनी हुई है। जिसके पास ही एक शिला पर एक धनुर्धारी वीर खड़ा है।
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