'चिंता चेतना की चिता जलाती है' इस पर अपना मत लिखिए
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चिंता चेतना की चिता जलाती है' इस पर अपना मत लिखिए
चिन्ता चेतना की चिता जलाती है , इस वाक्य मेरे विचार इस प्रकार है :
व्याख्या :
चिन्ता मनुष्य की चेतना जलाती है , चिन्ता मनुष्य के जीवन को बर्वाद कर देती है | चिन्ता मनुष्य को कोई भी कार्य नहीं करने देती | चिन्ता में मनुष्य हमेशा गलत सोचता रहता है , वह अपनी गलत से सोच सर बाहर नहीं निकल पाता है | वह हमेशा हर कार्य को चिन्ता का विषय लेकर छोड़ देता है | वह कभी भी अपने जीवन में खुश नहीं रह सकता | वह हमेशा चिंतन में पड़ा रहता है | वह अपने जीवन में इतनी चिन्ता कर लेता है , कि वह अच्छा सोचने के लायक नहीं रहता है |
जीवन में हमें चिन्ता नहीं करनी चाहिए | चिन्ता मनुष्य को नष्ट कर देती है | जीवन में अच्छा सोचकर आगे बढ़ना चाहिए |
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