चेत् (क्षणहानि:+तत:) अधिका हानि: का ? अ) क्षणहानिष्टतः आ) क्षणहानिस्ततः इ) क्षणहानिस्ततः
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भावार्थ:- यहाँ (सुबेल पर्वत पर) श्री रामजी ने अंगद को बुलाया। उन्होंने आकर चरणकमलों में सिर नवाया। बड़े आदर से उन्हें पास बैठाकर खर के शत्रु कृपालु श्री रामजी हँसकर बोले ॥2॥
* बालितनय कौतुक अति मोही। तात सत्य कहुँ पूछउँ तोही ॥
रावनु जातुधान कुल टीका । भुज बल अतुल जासु जग लीका ॥३॥
भावार्थ:- हे बालि के पुत्र ! मुझे बड़ा कौतूहल है । हे तात! इसी से मैं तुमसे पूछता हूँ, सत्य कहना। जो रावण राक्षसों के कुल का तिलक है और जिसके अतुलनीय बाहुबल की जगत्भर में धाक है, ॥3॥
'तासु मुकुट तुम्ह चारि चलाए । कहहु तात कवनी *
बिधि पाए ॥
सुनु सर्बग्य प्रनत सुखकारी। मुकुट न होहिं भूप न गुन
चारी ॥4॥
भावार्थ:- उसके चार मुकुट तुमने फेंके हे तात! बताओ, तुमने उनको किस प्रकार से पाया! (अंगद ने कहा-) हे सर्वज्ञ ! हे शरणागत को सुख देने वाले ! सुनिए। वे मुकुट नहीं हैं। वे तो राजा के चार गुण हैं |