चातक-पुत्र को कब और किस प्रकार अपनी आत्ममर्यादा और आत्माभिमान का बोध हुआ? लिखि
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चातक पुत्र को अपनी आत्मा मर्यादा और आत्मज्ञान का बोध तब हुआ जब उसने बुद्धन को अपने बेटे से कहते हुए सुना कि जिस तरह चातक अपने प्रार्थी कभी मिल के सिवा किसी अन्य शोध से जल ग्रहण कर व्रत नहीं तोड़ते उसी तरह तुम भी इमानदारी की टेक मत छोड़ना ।
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चातक पुत्र को अपनी आत्मा मर्यादा और आत्मज्ञान का वो तब हुआ जब उसने बदन को अपने बेटे से कहते हुए सुना कि जिस तरह चातक अपने प्रार्थी कभी मिलकए सेवा किसी अन्य को शोक के जल ग्रहण कर नहीं तोड़ते उसी तरह तुम भी इमानदारी की डेट मत तोड़ना टेक मत छोड़ना
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