चांद को मां आप उचित स्थान पर अनुदान सी का प्रयोग कीजिए
Answers
Explanation:
Chandrama is a right answers
Answer:
here is your answer
Explanation:
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 13
अनुस्वार के उच्चारण में ‘अं’ की ध्वनि मुख से निकलती है। हिंदी में लिखते समय इसका प्रयोग शिरोरेखा के ऊपर बिंदु लगाकर किया जाता है। इसका प्रयोग ‘अ’ जैसे किसी स्वर की सहायता से ही संभव हो सकता है; जैसे – संभव।
इसका वर्ण-विच्छेद करने पर ‘स् + अं(अ + म्) + भ् + अ + व् + अ’ वर्ण मिलते हैं। इस शब्द में अनुस्वार ‘अं’ का उच्चारण (अ + म्) जैसा हुआ है, पर अलग-अलग शब्दों में इसका रूप बदल जाता है; जैसे
संचरण = स् + अं(अ + न्) + च् + अ + र् + अ + ण् + अ
संभव = स् + अं(अ + म्) + भ् + अ + व् + अ ।
संघर्ष = स् + अं(अ + ङ्) + घ् + अ + र् + ष् + अ
संचयन = स् + अं(अ + न्) + च् + अ + य् + अ + न् + अ
अनुस्वार प्रयोग के कुछ नियम
अनुस्वार के प्रयोग के निम्नलिखित नियम हैं-
(i) पंचमाक्षर का नियम – जब किसी वर्ण से पहले अपने ही वर्ग का पाँचवाँ वर्ग (पंचमाक्षर) आए तो उसके स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग होता है; जैसे –
गङ्गा = गंगा,
ठण्डा = ठंडा,
सम्बन्ध = संबंध,
अन्त = अंत आदि।
(ii) य, र, ल, व (अंतस्थ व्यंजनों) और श, ष, स, ह (ऊष्म व्यंजनों) से पूर्व यदि पंचमाक्षर आए, तो अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाता है; जैसे –
सन्सार = संसार,
सरक्षक = संरक्षक,
सन्शय = संशय आदि।
ध्यान दें – हिंदी को सरल बनाने के उद्देश्य से भिन्न-भिन्न नासिक्य ध्वनियों (ङ, ञ, ण, न और म) की जगह बिंदु का प्रयोग किया जाए। संस्कृत में इनका वही रूप बना रहेगा।
संस्कृत में – अङ्क, चञ्चल, ठण्डक, चन्दन, कम्बल।
हिंदी में – अंक, चंचल, ठंडक, चंदन, कंबल।
अनुस्वार का प्रयोग कब न करें-
निम्नलिखित स्थितियों में अनुस्वार का प्रयोग नहीं करना चाहिए-
(i)
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 14
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 1
(ii) यदि अनुस्वार के पश्चात् कोई पंचमाक्षर (ङ, ञ, ण, न, म) आता है, तो अनुस्वार का प्रयोग मूलरूप में किया जाता है। अनुस्वार का बिंदु रूप अस्वीकृत होता है; जैसे –
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 2
l व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 15
सम्+हार = संहार
सम्+सार = संसार
सम्+चय = संचय
सम्+देह = संदेह
सम्+ चार = संचार
सम्+भावना = संभावना
सम्+कल्प = संकल्प
सम्+जीवनी = संजीवनी
अनुनासिक
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 16
ध्यान दें- अनुनासिक की जगह अनुस्वार और अनुस्वार की जगह अनुनासिक के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है,जैसे –
हँस (हँसने की क्रिया)
हंस (एक पक्षी)।
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 17
हैं = ह + एँ
मैं = म् + एँ
में = म् + एँ
कहीं = क् + अ + ह् + ईं
गोंद = ग् + ओं + द् + अ
भौंकना = भ् + औं + क् + अ + न् + आ
पोंगल = प् + औं + ग् + अ + ल् + अ
जोंक = ज् + औं + क् + अ
शिरोरेखा के ऊपर मात्रा न होने पर इसे चंद्रबिंदु के रूप में ही लिखा जाता है; जैसे-आँगन, आँख, कुँआरा, चूंट आदि।
यह भी जानें-
अर्धचंद्राकार और अनुनासिक में अंतर-
हिंदी भाषा में अंग्रेज़ी के बहुत-से शब्द प्रयोग होते हैं। इनको बोलते समय इनकी ध्वनि ‘आ’ और ‘ओ’ के बीच की निकलती है। इसे दर्शाने के लिए अर्धचंद्राकार लगाया जाता है; जैसे-डॉक्टर, ऑफिस, कॉलेज आदि। इन शब्दों की ध्वनियाँ क्रमशः ‘डा और डो’, ‘आ और ओ’, ‘का और को’ के मध्य की हैं। इनके उच्चारण के समय मुँह आधा खुला रहता है। आगत भी कहा जाता है। ध्यान रहे कि अर्धचंद्राकार का प्रयोग अंग्रेजी शब्दों के लिए होता है जबकि अनुनासिक हिंदी की ध्वनि है।
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 18
उदाहरण
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 3
पाठ्यपुस्तक के पाठों पर आधारित शब्दों में अनुस्वार/अनुनासिक का प्रयोग
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 4
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 5
दुख का अधिकार
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 6
एवरेस्ट-मेरी शिखर यात्रा
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 7
तुम कब जाओगे, अतिथि
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 8
वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन्
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 9
कीचड़ का काव्य
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 10
धर्म की आड़
व्याकरण अनुस्वार एवं अनुनासिक 11