History, asked by salonimaurya70, 4 months ago

चौथा वर्ग कैसे बना? वाणिज्य तथा व्यापार में इनका क्या योगदान था

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Answered by misrabarnali594
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धन प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया कार्य वाणिज्य कहलाता है।

Explanation:

धनप्राप्ति के उद्देश्य से वस्तुओं का क्रय-विक्रय करना ही वाणिज्य (कॉमर्स) है। किसी उत्पादन या व्यवसाय का वह भाग जो उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की उनके उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के बीच विनिमय से सम्ब्न्ध रखता है, वाणिज्य कहलाता है। वाणिज्य के अन्तर्गत किसी आर्थिक महत्व की वस्तु, जैसे सामान, सेवा, सूचना या धन का दो या दो से अधिक व्यक्ति या संस्थाओं के बीच सौदा किया जाता है। वाणिज्य पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एवं कुछ अन्य अर्थव्यवस्थाओं का मुख्य वाहक है।

संसार में प्रत्येक व्यक्ति की कई आवश्यकताएँ होती हैं। उनको प्राप्त करने के लिए वह आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। इनमें से कुछ वस्तुएँ तो वह स्वयं बना लेता है और अधिकांश वस्तुएँ उसे बाजार से मोल खरीदनी पड़ती हैं। वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए उसे धन की आवश्यकता पड़ती है और इस धन को प्राप्त करने के लिए या तो वह दूसरों की सेवा करता है अथवा ऐसी वस्तुएँ तैयार करता है या क्रय-विक्रय करता है जो दूसरों के लिए उपयोगी हों। वस्तुओं का रूप बदलकर उनको अधिक उपयोगी बनाने का कार्य उद्योग माना जाता है। वाणिज्य में वे सब कार्य सम्मिलित रहते हैं जो वस्तुओं के क्रय-विक्रय में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। जो व्यक्ति वाणिज्य संबंधी कोई कार्य करता है उसे वणिक् कहते हैं।

वाणिज्य के अंग : वाणिज्य के दो प्रधान अंग हैं - दूकानदारी और व्यापार। जब वस्तुओं का क्रयविक्रय किसी एक स्थान या दूकान से होता है, तब उस संबंध के सब कार्य दुकानदारी के अंदर आते हैं। जब वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजकर विक्रय किया जाता है, तब उस संबंध के सब कार्य व्यापार के अंदर समझे जाते हैं। देशी व्यापार में वस्तुओं का क्रयविक्रय एक ही देश के अंदर होता है। विदेशी व्यापार में वस्तुओं का क्रयविक्रय दूसरे देशों के साथ होता है। बड़े पैमाने पर दूर-दूर के देशों से व्यापार के लिए बड़ी पूँजी की आवश्यकता होती है जो सम्मिलित पूँजीवादी कंपनियों और वाणिज्य बैंकों द्वारा प्राप्त होती है। संसार के भिन्न-भिन्न देशों में संसारव्यापी वाणिज्य में लगे हुए व्यक्तियों ने मिलकर प्रत्येक देश में वाणिज्य मंडलों (Chambers of Commerce) की स्थापना कर ली है। इन मंडलों का प्रधान कार्य देश के वाणिज्य के हितों की सम्मिलित रूप से रक्षा करना और सरकार द्वारा रक्षा करना है। वाणिज्य संबंधी कार्यों का उचित रूप से नियंत्रण करने के लिए प्रत्येक देश की सरकार जो कानून बनाती हैं, वे वाणिज्य विधि कहलाते हैं।

वाणिज्य को प्रभावित करने वाले कारक :किसी देश के उद्योग धंधों की दशा का उसके वाणिज्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। जिस देश में उद्योग धंधों द्वारा वस्तुओं की उत्पत्ति बराबर बढ़ती रहती है, उसका वाणिज्य भी उन्नत दशा में रहता है। किसी देश के वाणिज्य की उन्नति उसके यातायात के साधनों की दशा पर बहुत कुछ निर्भर रहती है। पहाड़ी देशों में, जहाँ सड़कों का प्राय: अभाव रहतो है, वाणिज्य और व्यापार पिछड़ी हुई दशा में रहता है। रेलों के प्रचार और समुद्री जहाजों की उन्नति से बीसवीं सदी में संसार के अधिकांश देशों में वाणिज्य की वृद्धि में बहुत सहायता मिली है। अब वायुयान द्वारा भी कीमती वस्तुओं का व्यापार होने लगा है। इससे भी वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला है।

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