चक्र किसे कहते हैं ?
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आयुर्वेद के अनुसार, चक्र की अवधारणा का संबंध पहिए-से चक्कर से हैं, माना जाता है इसका अस्तित्व आकाशीय सतह में मनुष्य का कहते हैं कि चक्र शक्ति केंद्र या ऊर्जा की कुंडली है जो कायिक शरीर के एक बिंदु से निरंतर वृद्धि को प्राप्त होने वाले
* चक्र, (संस्कृत: चक्रम् ): पालि: हक्क चक्का) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'पहिया' या 'घूमना' है।
भारतीय दर्शन और योग में चक्र प्राण या आत्मिक ऊर्जा के केन्द्र होते हैं। ये नाड़ियों के संगम स्थान भी होते हैं। यूँ तो कई चक्र हैं पर ५-७ चक्रों को मुख्य माना गया है। यौगिक ग्रन्थों में इनहें शरीर के कमल भी कहा गया है। [2] प्रमुख चक्रों के नाम हैं-
मूलाधार - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। उससे ऊपर आने पर क्रम से
स्वाधिष्ठान
मणिपूर
अनाहत
विशुद्धि
आज्ञाचक्र - मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे।
सहस्त्रार - कई विद्वान इसे इस लिए चक्र नहीं मानते कि इसमें ईड़ा और पिंगला का प्रभाव नहीं पड़ता।
आयुर्वेद के अनुसार, चक्र की अवधारणा का संबंध पहिए-से चक्कर से हैं, माना जाता है इसका अस्तित्व आकाशीय सतह में मनुष्य का दोगुना होता है।[3] कहते हैं कि चक्र शक्ति केंद्र या ऊर्जा की कुंडली है जो कायिक शरीर के एक बिंदु से निरंतर वृद्धि को प्राप्त होनेवाले फिरकी के आकार की संरचना (पंखे प्रेम हृदय का आकार बनाते हैं) सूक्ष्म देह की परतों में प्रवेश करती है। सूक्ष्म तत्व का घूमता हुआ भंवर ऊर्जा को ग्रहण करने या इसके प्रसार का केंद्र बिंदु है।[4] ऐसा माना जाता है कि सूक्ष्म देह के अंतर्गत सात प्रमुख चक्र या ऊर्जा केंद्र (जिसे प्रकाश चक्र भी माना गया) स्थित होते हैं।