can a nyone give me a poem on chapter "tum kab jaoge,atithi" ????
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आओ सुनाये मित्रो तुम्हे
इक अपनी राम कहानी
ऐसा अतिथी आया घर में जिसने
हमें पिलाया पानी
प्रथम पुरुष में लिख रहे है
जो जो हम पे गुजरी थी
अन्य पुरुष न समझा पायेगा
कैसी हालत अपनी थी
अतिथि जब तुम आए थे
तब हम कितना मुस्काए थे
पहले तुम आए
हम मुस्काए
तुम लगने लगे हम सब को प्यारे
और रहने लगे तुम दिल में हमारे
फिर तुम आए
हाथो में मिठाई का डिब्बा उठाये
मुह कराया मीठा हमारा
तबादला हो गया था हमारे शहर में तुम्हारा
एक मित्र सच्चा आया हमारा अपने शहर में
भीग गयी पलकें और प्रेम से ओत प्रोत हुआ दिल हमारा तुम्हारे प्रेम में
दो हफ्ते बीते
तुम आए आँखों में भाव ले कुछ रीते रीते
जब चाए का प्याला तुम्हे हमने थमाया
चेहरादेख तुम्हारा हमारा दिल भर आया
पुछा तुमसे क्या हुआ क्यों उदास लग रहे है
? तुमने कहा क्या बताएं परेशानी में घिर गए हैं
- हमने कहा कैसी है परेशानी कहिये हमसे
-शायद कोई हल निकाल सके हम मिलजुल के
मकान नहीं ढूंढ पा रहे हैं हम मन माफिक
कहा आपने /p>
हंस पड़े ठाहाक लगाकर हम
यह कैसी है परेशानी यह कैसा है गम
रह तो रहे है आप घर में हमारे
आराम से ढूँढिये मकान
आप है हमको अति प्यारे
ओ अतिथी हमारे
पर उस दिन से जो शुरू हो गयी व्यथा हमारी
कैसे मार ली हमने अपने ही पाओ पर कुल्हाड़ी
आपकी पत्नी बिरहन हो गयी
आपके याद में बेगम आपकी बेदम हो गयी
बुलाना पड़ेगा उन्हें आपको अपने पास
मजबूर हुए आप
और हमसे लगा बैठे आस
कड़वा घुट पी कर हमने हामी भर दी
पहले आपकी बेगम
फिर बच्चे
फिर तोते की पिटारी भी
आपके भाई ने हमारे पास रवाना कर दी
आपकी बेगम को आपसे कितना है प्यार
हमारी ही रसोई से हमारी ही पत्नी को कर दिया उन्होंने तड़ी पार
अब खाना तो आपकी पसंद का बनता है
राशन और इंधन लेकिन हमारे खाते से चलता है
बच्चे भी आपके हर फन में माहिर है सर्कार
बेटा हमारा एहसासे कमतरी का हो बैठा है शिकार
अब बच गए है हम
ढूढ़ देते है मकान तुम्हारे लिए
वरना तुमको तो घर मिल गया है
हमें ही न बहार निकल दो अतिथी समझ के
आज हम है खुश बहुत
मकान एक तुम्हारी पसंद का मिल गया है हमें
पेशगी भी दे आये है
कही देर न हो जाये
अपने ही घर में रहने का मौका कही हम फिर न चूक जाये
कल मागवा देंगे एक भाड़े का वाहन
सामान भी तुम्हारा सहेज समेत देरहे है हमही
हे अतिथि गण
अब इतना बतला दो
वो कल का शुभ महूरत
जब तुम अपने नए घर में गृह प्रवेश का जश्न मनाओगे
इक अपनी राम कहानी
ऐसा अतिथी आया घर में जिसने
हमें पिलाया पानी
प्रथम पुरुष में लिख रहे है
जो जो हम पे गुजरी थी
अन्य पुरुष न समझा पायेगा
कैसी हालत अपनी थी
अतिथि जब तुम आए थे
तब हम कितना मुस्काए थे
पहले तुम आए
हम मुस्काए
तुम लगने लगे हम सब को प्यारे
और रहने लगे तुम दिल में हमारे
फिर तुम आए
हाथो में मिठाई का डिब्बा उठाये
मुह कराया मीठा हमारा
तबादला हो गया था हमारे शहर में तुम्हारा
एक मित्र सच्चा आया हमारा अपने शहर में
भीग गयी पलकें और प्रेम से ओत प्रोत हुआ दिल हमारा तुम्हारे प्रेम में
दो हफ्ते बीते
तुम आए आँखों में भाव ले कुछ रीते रीते
जब चाए का प्याला तुम्हे हमने थमाया
चेहरादेख तुम्हारा हमारा दिल भर आया
पुछा तुमसे क्या हुआ क्यों उदास लग रहे है
? तुमने कहा क्या बताएं परेशानी में घिर गए हैं
- हमने कहा कैसी है परेशानी कहिये हमसे
-शायद कोई हल निकाल सके हम मिलजुल के
मकान नहीं ढूंढ पा रहे हैं हम मन माफिक
कहा आपने /p>
हंस पड़े ठाहाक लगाकर हम
यह कैसी है परेशानी यह कैसा है गम
रह तो रहे है आप घर में हमारे
आराम से ढूँढिये मकान
आप है हमको अति प्यारे
ओ अतिथी हमारे
पर उस दिन से जो शुरू हो गयी व्यथा हमारी
कैसे मार ली हमने अपने ही पाओ पर कुल्हाड़ी
आपकी पत्नी बिरहन हो गयी
आपके याद में बेगम आपकी बेदम हो गयी
बुलाना पड़ेगा उन्हें आपको अपने पास
मजबूर हुए आप
और हमसे लगा बैठे आस
कड़वा घुट पी कर हमने हामी भर दी
पहले आपकी बेगम
फिर बच्चे
फिर तोते की पिटारी भी
आपके भाई ने हमारे पास रवाना कर दी
आपकी बेगम को आपसे कितना है प्यार
हमारी ही रसोई से हमारी ही पत्नी को कर दिया उन्होंने तड़ी पार
अब खाना तो आपकी पसंद का बनता है
राशन और इंधन लेकिन हमारे खाते से चलता है
बच्चे भी आपके हर फन में माहिर है सर्कार
बेटा हमारा एहसासे कमतरी का हो बैठा है शिकार
अब बच गए है हम
ढूढ़ देते है मकान तुम्हारे लिए
वरना तुमको तो घर मिल गया है
हमें ही न बहार निकल दो अतिथी समझ के
आज हम है खुश बहुत
मकान एक तुम्हारी पसंद का मिल गया है हमें
पेशगी भी दे आये है
कही देर न हो जाये
अपने ही घर में रहने का मौका कही हम फिर न चूक जाये
कल मागवा देंगे एक भाड़े का वाहन
सामान भी तुम्हारा सहेज समेत देरहे है हमही
हे अतिथि गण
अब इतना बतला दो
वो कल का शुभ महूरत
जब तुम अपने नए घर में गृह प्रवेश का जश्न मनाओगे
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