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1) अहंकार के कारण मनुष्य में ईर्ष्या उत्पन्न होती हैं, जिसके कारण मनुष्य के स्वरूप स्वयं उसके समय, स्वास्थ और सद्व्उत्तियों के लिए बहुत विनाशकारी सिद्ध होते हैं।
2) दूसरे की सहज उन्नती को मनुष्य अपनी ईर्ष्या के वशीभूत होकर पचा नहीं पाता और उनके गुणों को अनदेखा कर के केवल दूसरों के दोषों को ही प्रचारित करने लगता है।
3) ईर्ष्या की प्रक्रिया में मनुष्य के स्वरूप, स्वास्थ, और सदाचार नष्ट हो जाते हैं।
4) अगर मनुष्य दूसरों के दोषों को ढूंढने के जगह, स्वयं के दोषों को खोजे और उन्हें सुधारने की कोशिश करे तो अहंकार खुद ब खुद मिट जाएगा ।
5) जब मनुष्य अपने दुर्गुणों को ढूंढने के जगह दुसरो के दोषों को खोजने लगता हैं , तब वह अहंकार का विशाल बोझ लेकर आता हैं।
6) मनुष्य अपने दुर्गुणों की ओर द्रूष्टी उठाकर देखना नहीं
चाहता।
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