Political Science, asked by inshabilal8595, 9 months ago

चन्द्रशेखर आजाद के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

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Answered by sube627
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Answer:

चन्द्रशेखर आजाद एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम जिसको सुनते ही ब्रिटिश अधिकारियों के रोंगेटे खड़े हो जाते। वे बिना किसी डर के अपने प्राण हथेली पर रखकर बेखौफ क्रान्तिकारी गतिविधियों को क्रियान्वित करते हुये घूमते थे। ऐसे भारत माँ के सपूत को कौन नहीं जानता। इतना महान व्यक्तित्व होते हुये भी वे बहुत सहज और सरल स्वभाव के थे। व्यक्तिगत रुप से वे कर्तव्यनिष्ठ, सीधे, सच्चे और ईमानदार व्यक्ति थे। उनमें बिल्कुल (लेस मात्र) भी घमंण्ड नहीं था और देश सेवा के लिये उन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

मुख्य तथ्यः–

पूरा नाम – पं. चन्द्रशेखर तिवारी

उपनाम या अन्य नाम – आजाद, पंड़ित जी, बलराज

जन्म – 23 जुलाई 1906

जन्म स्थान – गाँव भवरा, मध्य प्रदेश (आदिवासी गाँव)

माता-पिता – जगरानी देवी, पं. सीताराम तिवारी

मृत्यु – 27 फरवरी 1931

मृत्यु स्थान – अल्फ्रेड पार्क, इलाहबाद

मृत्यु का कारण – आत्महत्या (जीते जी अंग्रेजों की गिरफ्त में न आने की कसम को पूरा करने के लिये खुद को गोली मारी)।

उपलब्धियां – महान भारतीय क्रान्तिकारी, 1926 में काकोरी ट्रेन डकैती, लाला लाजपत राय की हत्या का बदला (1928), भगत सिंह और अन्य क्रान्तिकारियों के साथ हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ की स्थापना।

चन्द्रशेखर आजाद का जीवन परिचय (जीवनी)

चन्द्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 – 27 फरवरी 1931)

महान क्रान्तिकारी विचारधारा के स्वामी चन्द्र शेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को एक आदिवासी गाँव भवरा में हुआ था। इनके पिता पं. सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी थी। भील बालकों के बीच पले-बढ़े होने के कारण आजाद बचपन में ही निशाना लगाने में कुशल हो गये थे। बचपन से ही आजाद कुशल निशानची और निर्भीक स्वभाव के थे।

आजाद के मन में देश प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी थी। 15 साल की आयु में ही ये असहयोग आन्दोलन के समय पहली और आखिरी बार गिरफ्तार हुये। इन्होंने जीते जी अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार न होने की कसम खायी थी और मरते दम तक इस कसम का निर्वहन किया। वह कहते थे “आजाद हूँ,आजाद ही रहूँगा।” वह अंग्रेजी शासन से घृणा करते थे और उनसे आजादी प्राप्त करने के लिये सशक्त क्रान्ति के मार्ग को पसंद करते थे।

भगत सिंह इनके सबसे प्रिय सहयोगियों में से एक थे। ये भगत से बहुत प्रेम करते थे और किसी भी हाल में उन्हें खोना नहीं चाहते थे। भगत सिंह असेंम्बली बम कांड के बाद गिरफ्तार किये गये और उन्हें उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ मृत्यु दण्ड की सजा सुनायी गयी। इस दण्ड को रुकवाने के लिये आजाद 27 फरवरी 1931 इलाहबाद पं. नेहरु जी से मिलने के लिये गये, इसी दौरान किसी गुप्तचर (मुख़बिर) की सूचना पर पुलिस ने इस महान क्रान्तिकारी को अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया और आत्मसमर्पण करने को कहा।

आजाद ने करीब 1 घंटे तक पुलिस सिपाहियों से मुठभेड़ का सामना किया और अपने तमंचे की आखिरी गोली खुद को मारकर आत्महत्या कर ली। इस तरह इस क्रान्ति के देवता ने 27 फरवरी 1931 में स्वतंत्रता संग्राम के हवन में स्वंय की पूर्ण आहुति दे दी।

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