चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न हदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न। हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव।वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान। जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमार
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हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव।
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान।
जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दे हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।
संदर्भ : यह पंक्तियाँ भारत महिमा कविता से ली गई है | यह कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है| कवि ने कविता में गौरवशाली अतीत का बहुत सुन्दर वर्णन किया है | कविता भारतीयों के मन में अपने देश के प्रति प्रेम वह आदर दिखाती है|
भावार्थ : हम भारतवासी अपने अतीत के गौरव को कैसे भूल सकते है | आज इतने युगों बाद भी उसी देश के निवासी है और हमेशा रहेंगे | भारत के लोग सदा से चरित्रवान रहे है | भारतीयों की भुजाओं में भरपूर शक्ति रही है | भारतीयों में वीरता की कभी कमी नहीं रही है | हमने कभी अपनी महानता का घमंड नहीं किया है | अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व रहा है | हम कभी भी किसी को दुखी नहीं कर सकते है , दिन-दुखियों की सेवा करने के लिए हमेशा तैयार रहते है |
आज भी हमारी रगो में वही रक्त है , वही साहस है वही शांति और वही ज्ञान है | हम वही दिव्य आर्य संतान है , जिस में वर्तमान भारत भारतीयता को जीवित रखा है | हमारे अंदर आज भी वही शांति और जोश निहित है |