Hindi, asked by MeghalrjHum, 1 year ago

cbse expression Essay on Jayaprakash Narayan’s role in Indian freedom struggle in Hindi

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Answered by coolAnu
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जयप्रकाश नारायण एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे।उन्हें जेपी और लोकनायक के नाम से भी संबोधित किया जाता है। 1999 में, उन्हें सामाजिक कार्य के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। जयप्रकाश नारायण का जन्म भारत के बिहार राज्य के सारण जिले के एक गांव में 11 अक्टूबर 1902 को हुआ था।भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें अंग्रेजों द्वारा कई बार गिरफ्तार कर जेल में बंद किया गया और अत्याचार भी किया गया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे जनता के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय होकर उभरे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए उन्हें1932 में नासिक जेल में कैद किया गया था।वहां उन्होने राम मनोहर लोहिया, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, यूसुफ देसाई और अन्य राष्ट्रीय नेताओं से मुलाकात की । अपनी रिहाई के बाद उन्होंने कांग्रेस के भीतर एक वामपंथी समूह,कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, या (सीएसपी का निर्माण किया जिसके महासचिव के रूप में जयप्रकाश नारायण और अध्यक्ष के रूप में आचार्य नरेंद्र देव थे।

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Answered by kvnmurty
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    जयप्रकाश नारायण एक आदर्शवादी कार्यकर्ता थे जिसने भारतीय स्वतन्त्रता के लिए अपना जीवन समर्पित किया ।  उन्हों ने राजपूत राजाओं के पराक्रम के कथाएं और भगवद गीता पढ़ी और उनसे बहुत प्रभावित हुए ।  उन्हों ने अच्छे अंक पाये अपने मेट्रिकुलेशन में और अंग्रेजों  से चलनेवाले एक कालेज में भर्ती हुए।  जब मौलाना अजाद  ने भारतीयता के बारे में और अंग्रेजों के खिलाफ बोला, वे प्रभावित हुए और उसे छोड़कर भारत राष्ट्रिय कांग्रेस चलाने वाले एक विद्यापीठ में दाखिल हुए।

 
   नारायण ने एक स्वतंत्र योद्धा प्रभावती देवी से शादी की।  बाद में उन्हों ने अमेरिका में पढ़ाई की। जब वे अमेरिका में थे उन्हों ने अपनी बीबी को गांधीजी के आश्रम में रहने को कहा।  प्रभावती देवी कस्तूरबा जी के साथ स्वतन्त्रता की लड़ाई में भाग लेती थी।  अमेरिका से वापस आने के बाद नारायण जी जवाहरलाल नेहरू जी के पुकार सुनकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।  भारत राष्ट्रिय कॉंग्रेस में 1929 में भर्ती हुए।  गांधीजी के शिष्य बने।  अनेक बार जेल गए।  अंग्रेजों ने उन्हे बहुत मारा और पीठा ।  फिर  भी जेपी गांधीजी के साथ चले।

     राम मनोहर लोहिया
, मीनू मसानी , अशोक मेहता और यसुफ देसाई इत्यादी देशभक्तोंके साथ आजादी के लिए तरह तरह के विरोध अंग्रेजों के साथ कराते थे।  1932 में ग्णाधीजी के पुकार के अनुसार  सिविल-डिस-ओबीड़िएन्स (सहायता से इंकार) में भाग लिए और जेल गए।  जेल से भाग गए अपने दोस्तों के साथ।

 
     वे सोषलिस्म पर अधिक भरोसा करते थे।  इसी लिए कॉंग्रेस के अंदर होकर एक पार्टी “कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी” स्थापित किया और उसका मुख्य सचिव (जनरल सेक्रेटरी) बने।  राजनीति का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए , उनके मत में , लोगों की खुशी में उद्धार ।   आजादी के बाद स्वार्थ में पैसे कमाने के काम नहीं किया । सिर्फ लोगों के सेवा में जीवन बिताया।  इस से पता लगता है कि वे निस्वार्थ योद्धा थे आजादी के, जैसे गांधीजी ।

 
     1942 में गांधीजी के क्विट-इंडिया (भारत छोड़ो) आंदोलन में एक नायक के रूप में खास भूमिका निभाई। उस अभियान में आगे के पहले पंक्ती  में से अंग्रेज़ पुलिस का सामना किया।  आजादी के बाद और गांधीजी  के मरने के बाद उन्हों ने इस पार्टी को कांग्रेस से अलग किया और लोगों की भलाई के लिए काम किया।

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