Chai janghoshti Samaj ki 10 jaatiyon aur upjatiyo ke naam likhiye
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सबसे पहले सन् १८१५ में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने १८३४में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया। इसके बाद १८३५ में असम में चाय के बाग़ लगाए गए।[1]
कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के रखे हुए गर्म पानी के प्याले में, हवा के ज़रिये उड़कर कुछ सूखी पत्तियाँ आकर उसमे गिर गयी, जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू होता है चाय का सफ़र। ये बात ईसा से २७३७ साल पहले की है। सन् ३५० में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् १६१० में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय पदार्थ बन गया।
चाय जन गोष्टी की दस जातियों व जन जातियों के नाम निम्न प्रकार से लिखे गए है।
- अहिगोला
- भोक्ता
- असुर
- आर्य माला
- बासफोर
- बौरी
- बाउरी
- बेदिया
- भट्टा
- बसोर
- बैगा
- बोंडो
- 1815 में कुछ अंग्रेज यात्रियों का ध्यान असम की चाय की झाड़ियों की ओर गया । उन अंग्रेजो ने जब निरीक्षण किया तो उन्हें पता चला कि कुछ काबिले वाले इन पत्तियों से पेय बनाकर पीते है।
- इस घटना के बाद 1834 में लॉर्ड बैंटिक ने भारत में चाय पीने की परंपरा शुरू करने व चाय की पत्तियों को उगाने के लिए एक समिति का गठन किया तत्पश्चात 1835 में असम में चाय के बागान लगवाएं गए।
- कहा जाता है कि चीन के एक बादशाह के गरम पानी के पतिले में बाग से कुछ पत्तियां हवा में उड़कर अाई व पानी के साथ उबलने लगी। पानी के बदले हुए रंग ने बादशाह को आकर्षित किया व उस बादशाह ने उस पेय की कुछ चुस्कियां ली तो उसे बहुत पसंद आई। इस प्रकार चाय पीने की परंपरा शुरू हुई।
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